बरेली। उत्तर प्रदेश में कथित लव जिहाद रोकने के नाम पर लाए गए धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश के साइड इफेक्ट  जगह-जगह नज़र आने लगे हैं। प्रदेश में नए अध्यादेश के तहत की गई पहली गिरफ्तारी का केस भी बेहद हैरान करने वाला है। बरेली के एक गांव में रहने वाले ओवैस अहमद के खिलाफ नया अध्यादेश पारित होने के बारह घंटे के भीतर ही केस दर्ज़ कर लिया गया था। 2 दिसंबर को उसकी गिरफ्तारी भी हो गई। लेकिन अब इस केस की जो कहानी अब सामने आ रही है, वो बेहद चौंकाने वाली है।  

अंग्रेज़ी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बरेली के देवरनिया पुलिस थाने के तहत आने वाले गांव से जुड़े इस मामले में दर्ज केस की असलियत बेहद हैरान करने वाली है। दरअसल, गलत ढंग से धर्मांतरण रोकने के घोषित मकसद से लाए गए अध्यादेश के तहत पुलिस ने एक ऐसे मामले में केस दर्ज़ किया है, जिसमें न तो किसी का धर्मांतरण हुआ है और न ही कोई अंतर-धार्मिक विवाह रचाया गया है। फिर भी पुलिस ने न सिर्फ एक मुस्लिम युवक के खिलाफ केस दर्ज़ करके उसे गिरफ्तार कर लिया, बल्कि उसके परिवार वालों को प्रताड़ित करने के आरोप भी उस पर लग रहे हैं।

आरोप यह भी है कि पुलिस ने लड़की के घर वालों पर दबाव डालकर जबरन उस मामले में केस दर्ज करवाया जो करीब एक साल पहले ही आपसी सहमति से सुलझाया जा चुका था। अखबार की रिपोर्ट में बताया गया है कि गांव के प्रधान समेत ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि गांव का जो मसला सबकी सहमति से सुलझ गया था उसे पुलिस वाले फिर से उलझा रहे हैं।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए औवेस के पिता मोहम्मद रफीक ने बताया कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट की और शायद वे लड़की के घर वालों को भी धमका रहे हैं। उनका कहना है कि लड़की के परिवार वालों ने अपनी मर्ज़ी से एफआईआर दर्ज नहीं करवाई है। ओवैस के पिता के मुताबिक लड़की के पिता मुझसे मिले थे और उन्होंने हमें इस केस में सपोर्ट करने की बात कही थी। लेकिन पुलिस ने वाहवाही बटोरने के लिए एफआईआर दर्ज कर ली।

दरअसल ये मसला करीब एक साल पहले सुलझ चुका है। अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक ओवैस का एक हिंदू लड़की के साथ प्रेमसंबंध था। अक्टूबर 2019 में दोनों घर से भाग गये थे। लड़की के घरवालों की शिकायत पर पुलिस ने उसे मध्य प्रदेश में खोज निकाला था, जबकि ओवैस बिहार में मिला था। बताया जा रहा है कि दोनों पकड़े जाने के डर से अलग-अलग जगह गए थे और बाद में किसी तीसरे शहर में जाकर शादी करना चाहते थे।

पुलिस ने इस सिलसिले में ओवैस के खिलाफ़ लड़की के अपहरण का केस भी दर्ज किया था, लेकिन लड़की ने कहा कि वो अपनी मर्ज़ी से घर छोड़कर गई थी। पुलिस की जांच में भी ओवैस के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला, जिसके बाद केस बंद कर दिया गया था। लड़की के लौटने के बाद इस मसले पर गांव में पंचायत भी हुई। पंचायत के फैसले और घरवालों के समझाने-बुझाने के बाद लड़की की दूसरी जगह शादी भी कर दी गई। 

ऐसे में एक साल बाद नया अध्यादेश पारित होने के बारह घंटे के भीतर ओवैस के खिलाफ केस दर्ज करके उसकी गिरफ्तारी से पूरा गांव हैरान है। गांव वालों का कहना है कि लड़की की शादी के बाद उसके परिवार वाले एक खत्म हो चुके मामले को लेकर पुलिस के पास क्यों जाएंगे? इन हालात में ज्यादातर लोगों को यही लग रहा है कि पुलिस ने नए अध्यादेश के पारित होते ही सरकार से वाहवाही बटोरने के चक्कर में लड़की के परिवार वालों पर दबाव डालकर केस दर्ज़ कराया है। 

अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक गांव के प्रधान ध्रुव राज का भी यही कहना है कि इस मामले में पुलिस का दबाव होने की बात को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि दोनों परिवारों के बीच मामला सुलझ चुका था और विवाद खत्म हो गया था। बरेली के बीजेपी जिलाध्यक्ष पवन शर्मा के पिता नवल किशोर शर्मा समेत कई अन्य स्थानीय लोगों ने भी इस मामले में पुलिस की कार्रवाई पर हैरानी जताई है। पिछड़े वर्ग की बहुतायत वाले इस गांव में करीब दस फीसदी मुस्लिम हैं। गांव के लोगों का कहना है कि दोनों समुदायों के रिश्ते हमेशा काफी सौहार्दपूर्ण रहे हैं।

हालांकि पुलिस अधिकारी दावा कर रहे हैं कि पुलिस ने सारी कार्रवाई युवती के पिता की शिकायत पर की है, क्योंकि युवक ने उनकी बेटी को धर्म परिवर्तन ना करने पर जान से मारने की धमकी दी थी। हैरान करने वाली बात यह है कि जब लड़की की शादी कहीं और हो चुकी है तो भला ओवैस लड़की को धर्म परिवर्तन की धमकी क्यों देगा? शक की एक वजह यह भी है कि यह मामला सामने आने के बाद से लड़की का परिवार किसी से बात नहीं कर रहा। अखबार के मुताबिक लड़की के परिवार वालों ने कुछ लोगों को बताया है कि पुलिस ने उन्हें मीडिया या किसी और से बात नहीं करने की धमकी दी है। 

बरेली का यह मामला सिर्फ एक उदाहरण है कि शादी-ब्याह और प्रेम-संबंधों जैसे मामलों में धार्मिक विभाजन और ध्रुवीकरण बढ़ाने वाली सोच और आपराधिक कानूनों के दखल का क्या नतीजा हो सकता है। ऐसे मामले न सिर्फ व्यक्तिगत आज़ादी के लिए बढ़ते खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं, बल्कि इनसे सामाजिक सौहार्द का तानाबाना बिखरने का भी पूरा अंदेशा है।