नई दिल्ली। फरवरी में हुए उत्तरपूर्वी दिल्ली दंगों की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार उमर खालिद की रिहाई के लिए देश-विदेश के 200 से अधिक बुद्धिजीवियों और कलाकारों ने संयुक्त बयान जारी किया है। इन बुद्धिजीवियों ने पूर्व जेएनयू स्टूडेंट उमर खालिद की गिरफ्तारी को सोचा समझा 'विच हंट' बताया है और कहा है कि खालिद पर गलत तरीके से आतंकवाद विरोधी कानून (UAPA) के तहत कार्रवाई की गई है।

उन्होंने सरकार से खालिद के साथ साथ CAA-NRC विरोधी आंदोलन में भाग लेने के कारण गलत तरीके से गिरफ्तार किए गए दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग की है। साथ ही यह भी मांग की है कि दिल्ली पुलिस भारतीय संविधान के तहत ली गई शपथ को ध्यान में रखते हुए  निष्पक्षता से दिल्ली दंगों की जांच करे।

इन 208 बुद्धिजीवियों में नॉम चॉम्स्की, सलमान रुश्दी, अमिताव घोष, अरुंधति रॉय, राम चन्द्र गुहा, राजमोहन गांधी, फ़िल्म निर्माता मीरा नायर और आनंद पटवर्धन, इतिहासकार रोमिला थापर और इरफान हबीब, सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर एवं अरुणा रॉय का नाम शामिल है।

बयान में कहा गया है, "हम उमर खालिद के साथ मजबूती से खड़े हैं। उमर के ऊपर देशद्रोह, हत्या की साजिश और यहां तक की आतंकवाद विरोधी कानून तक कि धाराएं लगाई गई हैं। यह किसी भी तरह की असहमति को दबाने की प्रक्रिया है, जो पिछले कुछ सालों से देश में चल रही है। यहां तक कि कोरोना महामारी के समय में भी झूठे आरोप लगाकर राजनीतिक गिरफ्तारियां जारी हैं।"

इन बुद्धिजीवियों ने कहा कि CAA विरोधी आंदोलन आजाद भारत के इतिहास में सबसे शांतिपूर्ण आंदोलन रहा। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नक्शे कदम पर आगे बढ़ा और इसने उस भारतीय संविधान की भावना को आत्मसात किया जिसे डॉक्टर बीआर अम्बेडकर के नेतृत्व में ड्राफ्ट किया गया था।

बयान में आगे कहा गया कि उमर खालिद भारत में प्रतिरोध की एक बड़ी आवाज बनकर उभरे हैं। लेकिन भारतीय मीडिया का एक समूह उन्हें जिहादी बता रहा है। केवल इसलिए नहीं कि उमर खालिद सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलते हैं बल्कि इसलिए भी कि वे मुसलमान हैं।

बयान में पिंजरा तोड़ समूह की कार्यकर्ता नताशा नरवाल और देवांगना कलिता का भी जिक्र है। कहा गया है कि उन्हें आतंकवाद विरोधी धाराओं में केवल इसलिए गिरफ्तार किया गया है ताकि यह संदेश दिया जाए कि सरकार के खिलाफ जरा सी भी आवाज उठाने वालों का अंजाम अच्छा नहीं होगा। बयान में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का भी जिक्र है, जिन्होंने भड़काऊ भाषण दिए लेकिन उनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। खासकर कपिल मिश्रा का, जिन्होंने दिल्ली पुलिस के डीसीपी के बगल में खड़े होकर कानून अपने हाथ में लेने की बात कही थी।