नई दिल्ली। सात अगस्त को देश में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया गया। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि सरकार देश में दस शिल्प और हथकरघा ग्राम विकसित करने का लक्ष्य लेकर चल रही है, ताकि दुनिया भर के पर्यटक उन्हें देखने जा सकें और भारतीय बुनकरों की समृद्ध विरासत को जानकर ‘मेक इन इंडिया’ पहल को समर्थन दे सकें। लेकिन बीती 27 जुलाई को उनके मंत्रालय ने अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड को खत्म करने का नोटिफिकेशन जारी किया और फिर तीन अगस्त को अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड को खत्म कर दिया। सरकार के इस कदम के बाद बोर्ड के लोगों के बीच भारी नाराजगी है।

यह निर्णय ऐसे समय में आया है, जब कोरोना वायरस लॉकडाउन के प्रभावों की वजह से हस्तशिल्पकार अपनी अजीविका कमाने के लिए जूझ रहे हैं। साथ ही साथ बजट में भी इस क्षेत्र के लिए खर्च में लगातार कटौती की जा रही है। वहीं सरकार द्वारा दिए गए आर्थिक पैकेज में भी इस क्षेत्र के लिए कुछ खास नहीं किया गया है।जबकि प्रधानमंत्री मोदी आत्म निर्भर भारत का नारा बुलंद कर रहे हैं।  

केंद्र सरकार ने इस कदम को अपने ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ के नारे के तहत जायज ठहराया है। बताया जा रहा है कि इन बोर्ड पर सालाना मुश्किल से एक लाख रुपये का खर्च आता है। ऐसे में सरकार द्वारा ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ नारे के तहत इन बोर्ड को खत्म कर देना समझ से परे है।

बोर्ड से जु़ड़े लोगों का कहना है कि ये बोर्ड कामगारों की आवाज थे, अब उनकी आवाज के लिए कोई मंच नहीं बचा है। ये दोनों बोर्ड बहुत पुराने थे। अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड को 1992 में और अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड को 1952 में स्थापित किया गया था। दोनों बोर्ड में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, कामगार और उद्योग क्षेत्र के प्रतिनिधि शामिल थे और सरकार को नीतियां बनाने में सहायता प्रदान करते थे।

भारतीय हस्तशिल्पकारों की मदद करने वाले एक एनजीओ दस्तकारों की अध्यक्षा लैला तैय्यबजी ने मीडिया संस्थान द वायर को बताया, “वो जगहें जहां कामगार खुद सरकार से संवाद कर सकते हैं या सरकारी नीतियां बनाने में मदद कर सकते हैं, धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। यह काफी चिंताजनक है।”

वर्ष 1905 में सात अगस्त को ही देश में स्वदेशी आंदोलन शुरु किया गया था और इसी दिन को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में चुना गया है। इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर लोगों के बीच, हथकरघा उद्योग तथा सामाजिक-आर्थिक विकास में इसके योगदान के बारे में जागरूकता पैदा करना है।