पटना। बिहार के दरभंगा में NSUI के 'शिक्षा न्याय संवाद' कार्यक्रम में शामिल होने के बाद राहुल गांधी गुरुवार दोपहर 2 बजे पटना पहुंचे। एयरपोर्ट से वो सीधे सिटी सेंटर मॉल पहुंचे। यहां INOX थिएटर में उन्होंने 400 कार्यकर्ताओं के साथ फुले फिल्म देखी।

सिटी सेंटर के INOX मूवी थिएटर के ऑडिटोरियम- 1 में 2.20 बजे से 5.20 बजे तक के शो के लिए 400 टिकट बुक किए गए थे। फुले मूवी के शो के लिए स्पेशल पास बांटे गए थे। इसमें राहुल गांधी की फोटो लगी है और उन्हें 'सामाजिक न्याय का नायक' बताया गया है। साथ ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम की फोटो भी है। राहुल गांधी 4.54 बजे थिएटर से बाहर निकले और एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए। 

यह मूवी समाज सुधारक ज्योतिबा फुले पर आधारित है। बता दें कि दो दिन पहले ही मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा मंगलवार को भोपाल में फिल्म "फुले" की स्पेशल स्क्रीनिंग का आयोजन किया गया था। दिग्विजय सिंह ने कहा था कि यह फिल्म सभी को देखना चाहिए। सिंह की पहल के बाद मध्य प्रदेश के अन्य नेताओं ने भी इस तरह के आयोजन की बात कही थी। इसी क्रम में गुरुवार को बिहार कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी के आगमन पर पटना में फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी गई।

बता दें कि फ़िल्म "फुले" महात्मा ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन और संघर्ष पर आधारित है। यह फिल्म भारत में जाति और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ फुले दंपति के संघर्ष को दिखाती है। फ़िल्म फुले का सन्देश समाज में व्याप्त जातिगत और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत आवाज है। यह फिल्म दर्शकों को यह समझने के लिए प्रेरित करती है कि कैसे ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले के समाज को बदलने और आगे ले जाने में महती भूमिका निभायी। स्त्री शिक्षा की बात हो या समाजिक गैर-बराबरी की या फिर विधवा बाल विवाह की, समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ फुले दंपति ने उस दौर में आवाज उठायी जब लोग परंपरा के खिलाफ बोलने से भी डरते थे।

"फुले" फिल्म इस बात पर जोर देती है कि शिक्षा, समाज में बदलाव लाने का सबसे प्रभावी साधन है, खासकर वंचित और दलित वर्गों के लिए। ज्योतिराव और सावित्रीबाई ने लड़कियों और पिछड़ी जातियों के लिए स्कूल खोलकर इसकी मिसाल कायम की। देश की प्रथम महिला शिक्षक सावित्री बाई फुले के जीवन से प्रेरित यह फिल्म महिलाओं की शिक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का संदेश देती है। फुले दंपति का जीवन दर्शाता है कि सच्चा सुधार तभी संभव है जब समाज के सबसे हाशिए पर मौजूद लोगों को मुख्यधारा में लाया जाए।