जयपुर। केंद्र सरकार द्वारा जारी किए कृषि अध्यादेश के विरोध में आज राज्य की कृषि उपज मंडियां हड़ताल पर चली गई हैं। कृषि उपज मंडियों की हड़ताल 28 अगस्त तक जारी रहेगी। इससे राज्य के व्यापार, व्यापारियों, किसान तथा मज़दूरों को नुकसान तो होगा ही, इसके साथ ही राज्य सरकार के राजस्व पर भी इस चार दिवसीय हड़ताल से बुरा प्रभाव पड़ेगा।   

मंडियां मुखालिफत क्यों कर रही हैं ? 
प्रदेश की कृषि उपज मंडियों में पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ है। राज्य भर की 247 मंडियां केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ हड़ताल कर रही हैं। दरअसल केंद्र सरकार ने इसी साल 5 जून को 'कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सुविधा ) अध्यादेश अधिसूचित किया था। इस अध्यादेश के अनुसार मंडी के बाहर से व्यापार करने वालों को लाइसेंस और टैक्स में छूट दी गई है। जबकि मंडियों से व्यापार करने वाले व्यापारियों के लिए राज्य सरकार ने लाइसेंस की अनिवार्यता कर रखी है साथ ही मंडी शुल्क और कृषक कल्याण शुल्क भी उनसे वसूला जा रहा है। लिहाज़ा कृषि मंडी व्यापारियों को नुकसान हो रहा है और यही वजह है कि वो हड़ताल पर उतर आए हैं। 
  
व्यापारी क्या चाहते हैं? 
मंडी व्यापारियों का का कहना है कि इससे उनका व्यापार प्रभावित हो रहा है और ऐसा ही प्रावधान रहा तो मंडियां बंद होने की नौबत आ जाएगी। व्यापारियों के राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ ने इस संबंध में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी मांग की है कि मंडियों को बचाने के लिए मंडी से व्यापार कर रहे लोगों को भी छूट दी जाए। 

बता दें कि इन मंडियों में राज्य भर के करीब 13 हजार व्यापारी कारोबार करते हैं। इन मंडियों से करीब साढे तीन लाख पलदारों और कर्मचारियों को रोजगार की प्राप्ति होती है। एक अनुमान के मुताबिक मंडियों में सामान्य दिनों में प्रतिदिन तकरीबन 1500 करोड़ का टर्न ओवर होता है। कोरोना काल में यह टर्न ओवर करीब 600-700 करोड़ रुपए प्रतिदिन है। रेखांकित करने योग्य बात यह है कि राज्य की मंडियों में हर रोज करीब 30 करोड़ की दलाली होती है। मंडी शुल्क और जीएसटी का करीब रोज करीब 50 करोड़ का सरकार को राजस्व मिलता है। ज़ाहिर है मंडी व्यापारियों की यह हड़ताल राज्य के कारोबार को बुरी तरह से प्रभावित करने वाली है।