जयपुर। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के एक करीबी को एंटी करप्शन ब्यूरो से क्लीन चिट मिली तो सचिन पायलट के करीबी ने उसे अदालत में चुनौती देने का एलान कर दिया। दो करीबियों के इस टकराव की वजह से अब गहलोत और पायलट के आपसी रिश्तों की मौजूदा स्थिति को लेकर उहापोह की स्थिति पैदा हो गई है। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम को लेकर न तो अब तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ से कोई बयान आया और न ही सचिन पायलट ने कुछ कहा है। लेकिन समर्थकों की भिड़ंत के चलते कयास लग रहे हैं कि दोनों गुटों के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।

ये पूरा मसला गहलोत के करीबी और जोधपुर विकास प्राधिकरण (JDA) के पूर्व चेयरमैन राजेंद्र सोलंकी को भ्रष्टाचार के एक कथित मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो की तरफ से क्लीन चिट दिए जाने से जुड़ा है। पायलट के करीबी और पूर्व पार्षद राजेश मेहता ने सोलंकी को दी गई इस क्लीन चिट को राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती देने का इरादा ज़ाहिर करते हुए एसीबी की क्लोज़र रिपोर्ट की पूरी जानकारी मांगी है। मेहता ने इसके लिए सेशन्स कोर्ट में आवेदन भी दे दिया है। 

दरअसल गहलोत के पिछले कार्यकाल के दौरान JDA की तरफ से शहर में विभिन्न विकास कार्य कराए गए थे। भाजपा के सत्ता में आने के बाद एसीबी ने इसमें भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए 4 अलग-अलग मामले दर्ज किए थे। इसके बाद सोलंकी सहित कई अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई और मामला गरमा गया। लेकिन गहलोत के दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद ACB की जांच की दिशा बदल गई। ACB ने सोलंकी के कार्यकाल में हुए सभी कार्यों को जनउपयोगी मानते हुए कोर्ट में अपनी तरफ से एफआर यानी फाइनल रिपोर्ट पेश कर दी और सोलंकी को क्लीनचिट दे दी। 

अब जोधपुर में गहलोत के धुर विरोधी और पायलट के खास राजेश मेहता ने सेशन्स कोर्ट (भ्रष्टाचार निवारण प्रकरण) में आवेदन करके इस मामले में एसीबी की ओर से पेश की गई क्लीनचिट की पूरी जानकारी उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। उन्होंने आवेदन में कहा है कि इन चारों मामलों में गिरफ्तारी से बचने के लिए सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। उस समय हाईकोर्ट ने इन्हें राहत अवश्य प्रदान की, लेकिन यह माना कि आरोपियों के खिलाफ अपराध के साक्ष्य उपलब्ध हैं। इसके बाद ACB अग्रिम जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत आवेदन को स्थगित कर दिया गया।

मेहता के मुताबिक दोनों न्यायालयों में सुनवाई के दौरान ACB की ओर से कहा गया कि आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। ऐसे में ACB की ओर से सत्ता के दबाव में जांच का नकारात्मक नतीजा कोर्ट में पेश किया गया है। जो किसी भी परिस्थिति में स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। मेहता की तरफ से कहा गया है कि वे इस एफआर को हाईकोर्ट में चुनौती देना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें चारों मामलों में लगाई गई एफआर की सत्यापित प्रतिलिपि उपलब्ध कराई जाए। कोर्ट इस मामले में अब अपना निर्णय सुनाएगा।

हैरानी भरी बात तो यह है कि गहलोत के करीबी पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करने वाली बीजेपी भी इस पूरे प्रकरण के दौरान चुप है। बीजेपी की ओर से अब तक किसी नेता ने न तो सोलंकी को क्लीन चिट दिए जाने का विरोध किया है और न ही राजेश मेहता द्वारा हाई कोर्ट जाकर जानकारी मांगने के निर्णय का समर्थन किया है।