नई दिल्ली। सूचना के अधिकार कानून में किए गए बदलावों को चुनौती देने वाली याचिका पर मोदी सरकार ने एक साल बाद भी अपना जवाब सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश नहीं किया है। इस भयानक लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश की तरफ से दायर इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को 31 जनवरी 2020 को नोटिस भेजा था। देश की सबसे बड़ी अदालत ने तब मोदी सरकार को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा था, लेकिन सरकार ने अब तक कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है।

सोमवार को इस मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की दो सदस्यीय पीठ ने सरकारी वकील की जमकर क्लास लगाई। खंडपीठ ने सरकार की तरफ से समय पर जवाब दाखिल न किए जाने पर नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण मसला है। लेकिन हमारे नोटिस का जवाब एक साल बाद भी दाखिल नहीं किया गया। कोर्ट ने बेहद तल्ख लहजे में सरकारी वकील से पूछा कि आखिर आपकी परेशानी क्या है? इस मामले में नोटिस जारी किए हुए एक साल हो गया। आपको जवाब दाखिल करने के लिए और कितना समय चाहिए? कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि उसे जवाब दाखिल करने के लिए और दो हफ्ते का समय दिया जा रहा है। लेकिन इस बार देर नहीं होनी चाहिए। 

दरअसल 2019 में मोदी सरकार ने सूचना के अधिकार के कानून में कई बदलाव कर दिए। इन बदलावों के जरिए सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन-भत्ते निर्धारित करने का अधिकार अपने हाथ में ले लिया। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने मोदी सरकार द्वारा आरटीआई एक्ट में किए गए इन बदलावों को संविधान विरोधी और कानून के मूल मकसद के खिलाफ बताते हुए उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। कांग्रेस नेता का कहना है कि मोदी सरकार ने कानून में ऐसे बदलाव किए हैं, जिनका सूचना आयोग की स्वायत्तता पर बुरा असर पड़ने की आशंका है।