नई दिल्ली। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार से आशा कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं, और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाओं की दयनीय स्थिति पर तत्काल ध्यान देने का आह्वान किया है। राज्यसभा में सोनिया गांधी ने कहा कि ये योजनाएं महिला सशक्तिकरण के लिए बनाई गई हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद इन महिला कर्मियों पर काम का अत्यधिक बोझ है और इन्हें अपर्याप्त मानदेय दिया जाता है।

सोनिया गांधी ने सदन को बताया कि पूरे देश में आशा कार्यकर्ता टीकाकरण, जन-जागरूकता, मातृ स्वास्थ्य और परिवार कल्याण से जुड़े महत्वपूर्ण कार्य करती हैं, फिर भी उन्हें कम मानदेय और सीमित सामाजिक सुरक्षा के साथ स्वयंसेवक के रूप में ही रखा गया है। उन्होंने आगे कहा कि इसी तरह केंद्र सरकार द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को 4,500 रुपये और सहायिकाओं को 2,250 रुपये प्रति माह का अल्प मानदेय दिया जाता है।

इसके अलावा गांधी ने एकीकृत बाल विकास सेवा यानी आईसीडीएस योजना में विभिन्न स्तरों पर लगभग तीन लाख रिक्तियों की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि इन रिक्तियों के कारण लाखों बच्चों और माताओं को आवश्यक सेवाओं से वंचित रहना पड़ता है। उन्होंने आगे कहा कि जब ये पद भरे भी जाते हैं, तब भी 2011 के बाद से जनगणना के आंकड़े अपडेट न होने के कारण ये पद आबादी के हिसाब से कम पड़ते हैं।

सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार से राज्यों के साथ मिलकर पांच उपायों को प्राथमिकता देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि सभी मौजूदा रिक्त पदों को तुरंत भरा जाए। सभी कार्यकर्ताओं को समय पर पारिश्रमिक सुनिश्चित किया जाए। इन फ्रंटलाइन कर्मियों के वेतन में केंद्र सरकार के योगदान को दोगुना किया जाए। 2,500 से अधिक आबादी वाले गांवों में एक अतिरिक्त आशा कार्यकर्ता की नियुक्ति की जाए। मौजूदा पोषण और स्वास्थ्य पहलों के साथ-साथ प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा को सक्षम बनाने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की संख्या दोगुनी की जाए। उन्होंने अंत में जोर देकर कहा कि इस कार्यबल को मजबूत करना, उसका विस्तार करना और समर्थन करना भारत के भविष्य में किया गया एक महत्वपूर्ण निवेश है।