मुंबई। मीडिया के ऊपर एक गंभीर टिप्पणी करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay HC) ने कहा है कि वर्तमान में मीडिया बुरी तरह से बंट गया है जबकि पहले के समय में पत्रकार निष्पक्ष और जिम्मेदार होते थे। बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajpoot) मामले में डाली गई एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की। इस याचिका को महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस अधिकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों और कुछ एनजीओ की तरफ से डाला गया है। याचिका में मांग की गई है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में मीडिया ट्रायल बंद होना चाहिए। 

इससे पहले 20 अक्टूबर को बॉम्बे हाई कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी (Republic TV) से पूछा था कि वह जनता से यह फैसला लेने के लिए कैसे कह सकता है कि किसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए और किसे नहीं। कोर्ट ने पूछा था कि यह किस तरह की खोजी पत्रकारिता है। कोर्ट ने इसके साथ ही न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन से यह भी पूछा कि इस तरह के संवेदनशील मामलों में गैरजिम्मेदार रिपोर्टिंग के लिए स्वत: संज्ञान के आधार पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई। 

इस मामले में रिपब्लिक टीवी के अलावा दूसरे न्यूज चैनलों का भी नाम है। जी न्यूज (Zee News) ने कहा कि उसने सधी हुई रिपोर्टिंग की है और मीडिया को सेल्फ रेगुलेशन की जरूरत है ना कि किसी भी तरह के सरकारी हस्तक्षेप की। इसके जवाब में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस गिरीश एस कुलकर्णी की बेंच ने कहा कि हम सभी भारत के कानून के आधार पर ही काम करते हैं। आप उन लोगों की वकालत कैसे कर सकते हैं जो दूसरों पर आरोप लगाते फिरते हैं और फिर मीडिया की आजादी के नाम पर बचना चाहते हैं। 

जस्टिस कुलकर्णी ने जी न्यूज के वकील को 1983 के विधि आयोग की रिपोर्ट के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में भारतीय और यूरोपीय मीडिया की तुलना की गई है और सुझाव दिया गया है कि मीडिया को संतुलन में रखने के लिए कुछ हद तक सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत है। इसके जवाव में जी न्यूज के वकील ने कहा कि मीडिया को रेगुलेट नहीं किया जा सकता है। बेंच ने कहा कि यहां बात रेगुलेट करने की नहीं है बल्कि कुछ शक्ति संतुलन की है। 

कोर्ट ने कहा कि लोग अपने लिए सीमा खींचना भूल जाते हैं। मीडिया सरकार की आलोचना करना चाहती है, करे। बात यह है कि इस मामले में किसी की मौत हुई है और आरोप यह है कि मीडिया इसमें हस्तक्षेप कर रही है। 

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इस दौरान इंडिया टीवी और न्यूज नेशन के वकीलों ने कहा कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में मीडिया ट्रायल केवल एक मामला है। इसके आधार पर कोर्ट को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के रेगुलेशन पर जोर नहीं देना चाहिए। इन वकीलों ने यह भी कहा कि जिन देशों में मीडिया को रेगुलेट किया गया, वहां प्रेस की आज़ादी कम हो गई। इस मामले की अगली सुनवाई अब 29 अक्टूबर को होगी।