लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने महिलाओं के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अपराधों को नियंत्रित करने के लिए एक अजीबोगरीब पहल की शुरुआत की है। अब राजधानी लखनऊ में महिलाओं पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस कैमरे से नजर रखी जाएगी। ये कैमरे सभी महिलाओं के चेहरे के भाव पर नजर रखेंगे। पिछले हफ्ते कुछ इसी तरह की पहल की चर्चा मध्य प्रदेश में भी हो चुकी है, जब घर से बाहर काम पर जाने वाली महिलाओं का थानों में रजिस्ट्रेशन कराने की बात कही गई।

दरअसल, उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के कमिश्नर ने गुरुवार को बताया कि राजधानी के उन 200 चौराहों को चिन्हित किया गया है जहां छेड़छाड़ जैसे अपराध ज्यादा होते हैं। इन जगहों पर आर्टिफिशियल कैमरे लगाए जाएंगे जिसके द्वारा वहां से गुजरने वाली सभी महिलाओं पर नजर रखा जाएगा। ये कैमरे महिलाओं के चेहरे के भाव को पढ़ सकेंगे।

बीते हफ्ते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि सरकार एक ऐसी व्यवस्था लाने जा रही है जिसमें महिलाओं को घर से निकलते वक्त खुद को थाने में रजिस्टर्ड करना होगा। इसके बाद पुलिस उस महिला का मूवमेंट ट्रैक करेगी। घर से कहीं भी बाहर जाने के बाद पुलिस महिलाओं पर नजर रखेगी। ऐसा इसलिए किया जाएगा ताकि महिलाओं को सुरक्षा दी जा सके।

सवाल यह है कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में महिलाओं के खिलाफ लगातार होने वाली अपराध की घटनाओं पर लगाम कसने के लिए अपराधियों से निपटने की बजाय उल्टे महिलाओं पर नजर रखना किस तरह की सोच का नतीजा है? महिलाओं की सुरक्षा के लिए अपराधियों को जेल में डालने की जगह उल्टे महिलाओं पर ही पाबंदी या निगरानी बढ़ा देना क्या उसी तरह दकियानूसी सोच का नतीजा नहीं है, जिसमें छेड़खानी की शिकार लड़कियों और महिलाओं को ही एहसास कराया जाता है कि आखिर वे घर से बाहर निकली ही क्यों थीं? पुलिस प्रशासन का काम अपराधियों पर कार्रवाई करके, उन्हें कठोर सजा देकर ऐसा माहौल बनाना होना चाहिए जहां महिलाएं खुद को कहीं भी असुरक्षित महसूस न करें। इसकी बजाय उल्टे महिलाओं पर ही पर निगरानी रखना क्या उन्हें एक बार फिर से घर की चहारदीवारी में कैद करने की तरफ बढ़ने जैसा नहीं है?