बड़बोले मंत्री विजय शाह ने सेना और ऑपरेशन सिंदूर का चेहरा कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर बेहद आपत्तिजनक बयान दिया मगर राजनीति है कि हर बात में अपना नफा नुकसान तौलती है। इस बार भी यही हुआ। बीजेपी सरकार अपने मंत्री को बचाने में लगी हुई। विपक्ष तो विपक्ष हाईकोर्ट के निर्देश को भी अनसुना कर मंत्री विजय शाह के खिलाफ एफआईआर में हर संभव देरी की गई। अब सरकार कह रही है कि मामला न्यायालय के अधीन है तो कुछ कर नहीं सकते जबकि खुद न्यायालय कह रहा है कि इस मामले में मंत्री के खिलाफ कार्रवाई कीजिए। मंत्री विजय शाह माफी मांग कर गायब है।
मंत्री तो सरकार है और सरकार का हुक्म बजाने के जतन में एमपी पुलिस की भारी किरकिरी हुई है। पुलिस ने अपने आका को बचाने के लिए कमजोर मामला बनाया और एफआईआर ऐसी लिखी कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे लेकिन हाईकोर्ट कहां चुप रहने वाला है? हाईकोर्ट सख्त है और पूरे मामले की निगरानी कर रहा है। पहले पुलिस ने मामला कमजोर दर्ज किया। यानी मंत्री विजय शाह को बचाए जाने के पूरे विकल्प खुले रखे गए। एफआईआर होने के पहले तक मंत्री सर्वसुलभ थे। प्रकरण दर्ज होने के बाद से भूमिगत हैं। अब पुलिस को वे मिल नहीं रहे हैं।
इस बीच उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा का एक वीडियो वायरल हो गया है जिसमें वे कहते सुनाई दे रहे हैं कि सेना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे नतमस्तक हैं। वीडियो वायरल होते ही उन्हें भी हटाने की मांग शुरू हो गई। हालांकि, जगदीश देवड़ा ने मीडिया से चर्चा में कहा कि उनके बयान को गलत समझा जा रहा है।
इन बयानों पर देश में जनता ही नहीं बीजेपी के समर्थकों में भी आक्रोश हैं। वे खुल कर मंत्री के खिलाफ कार्रवाई कर मांग कर रहे हैं जबकि बीजेपी वेट एंड वॉच की भूमिका में है। राजनीतिक विश्लेषको का मानना है कि यदि कोर्ट के दबाव में मंत्री के विरूद्ध कार्रवाई की भी गई तो कुछ समय बाद वे ज्यादा ताकतवर बनकर लौटेंगे।
ऐसे समय में जब हर चुप्पी का हिसाब रखा जा रहा है तब अपने समय के चर्चित पुलिस अधिकारी रिटायर्ड आईपीएस यशोवर्धन आजाद ने अपनी बिरादरी की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा है कि दु:ख की बात है कि जब आईएएस, आईपीएस और आईएफएस के संगठन अपने साथी विक्रम मिसरी के पक्ष में खड़े हुए लेकिन वे हमारे सशस्त्र बलों के साथी कर्नल सोफिया के लिए एकजुट होना भूल गए या टाल गए। जब मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह ने घृणित टिप्पणी की, जब यूपी के सपा से राज्यसभा सदस्य रामगोपाल यादव ने एयर मार्शल भारती और विंग कमांडर व्योमिका को जाति पर टिप्पणी की तो ये संगठन चुप्पी साध गए। ये हमारे राजनेता हैं और हम उन्हें वोट देते हैं।
आईएएस, आईपीएस और आईएफएस संगठनों के आह्वान करते हुए रिटायर्ड आईपीएस यशोवर्धन आजाद ने कहा कि चलो रक्षा सेवाओं के साथियों के लिए खड़े हो जाओ। वर्दीधारी और सिविल सेवाओं में कोई जाति या धर्म नहीं होता। इन राजनेताओं द्वारा इस तरह के विभाजन पैदा करने के प्रयासों की निंदा करें और हमारे देश के गौरव भारती, सोफिया और व्योमिका की प्रशंसा करें।
ब्यूरोक्रेट्स के संगठनों की अपनी पॉलिटिक्स है। वे हवा का रूख देख कर अपनी दिशा तय करते हैं। ऐसे में नेताओं के बिगड़े बोल के खिलाफ अंदरूनी प्रतिक्रियाएं तो आती है लेकिन रिटायर्ड आईपीएस यशोवर्धन आजाद ने सार्वजनिक मंच से आह्वान कर इन संगठनों को धर्म संकेट में डाल दिया है। अफसरों के संगठनों का स्टैंड दिलचस्प होगा, वे सत्ता के साथ खड़े रहेंगे या अपने साथियों की अपील पर चुप्पी तोड़ेंगे?
अफसरों भ्रष्टाचार पर असहाय बीजेपी एमएलए
कहते हैं सत्ता व्यक्ति को भ्रष्ट बनाती है। मध्यप्रदेश में भी यही हो रहा है। बीजेपी लंबे समय से सत्ता में है और सत्ता के निकट के अफसर-कर्मचारी बेलगाम होते जा रहे है। इन अफसरों का आचरण इतना भ्रष्ट हो चुका है कि खुद सत्ताधरी दल के विधायक मोर्चा खोल का मैदान में आ गए है।
मामला शिवपुरी का है। शिवपुरी से बीजेपी विधायक देवेन्द्र जैन ने जिले में सरकारी दफ्तरों में फैले भ्रष्टाचार को लेकर मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा है कि मेरे इन दो शब्दों से ही आप नगर पालिका के हालातों को समझ सकते हैं कि शिवपुरी में इस समय नगर पालिका नहीं, बल्कि नरक पालिका स्थापित है। यहां कोई काम सही से नहीं हो रहा और नगर पालिका मेरे कंट्रोल से बाहर है। दो साल में नगर पालिका को विकास कार्यो के लिए मुख्यमंत्री से 21 करोड़ रुपए दिए, इनमें से 10 करोड़ रुपए तो नगर पालिका के पास आ भी चुके हैं, शेष राशि भी जल्द आ जाएगी, लेकिन कोई काम धरातल पर नहीं हो रहा। विधायक ने खनिज विभाग, राजस्व, खाद्य विभाग से लेकर पोषण आहार केन्द्र में भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने की बातें कही हैं। उन्होंने कहा कि पोषण आहार केन्द्र पर तो खाली ट्रक आते हैं और पूरा माल आने की एंट्री होती है। यहां पर करोड़ो रुपए का घपला हो रहा है।
अपनी ही सरकार में भ्रष्टाचार से आजीज आ चुके विधायक देवेन्द्र जैन ने साफ कहा है कि शिवपुरी से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों को वह विधानसभा में उठाएंगें और वहां भी सुनवाई नहीं हुई तो वह हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगें।
पानी का निजीकरण, खाली बर्तन, कोर्ट पहुंची महिलाएं
बीजेपी के एमएलए तो भ्रष्टाचार को लेकर बाद में हाईकोर्ट जाएंगे, खंडवा में निजीकरण और अफसरशाही के रवैये तंग महिलाए अभी ही कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गई है। आपको याद है या नहीं मगर खंडवा मध्य प्रदेश का पहला शहर है जहां पानी का निजीकरण किया गया है। इस काम को खूब जोरशोर से तारीफों के साथ शुरू किया गया था लेकिन यह योजना बुरी तरह विफल हो गई है। हालत यह है चौबीस घंटे पानी देन की योजना का क्रियान्वयन तो दूर सप्ताह में हर दिन साफ पानी देने के लिए भी पंचायतों और नगरीय निकाय को निजी जल स्रोत अधिगृहित करने पड़ रहे हैं।
खंडवा में पानी की समस्या को लेकर सड़क पर उतरी महिलाओं ने अब हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। याचिकाकर्ता अनीता धोतरे का आरोप है कि जल आपूर्ति का निजीकरण करने से पानी की गुणवत्ता खराब हो गई और पाइप लाइन बार-बार फुटी रही हैं। अनीता का आरोप है कि जल वितरण के ठेकेदारों ने अनुबंध के शर्तों का उल्लंघन किया और संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन किया है। उन्होंने उच्च न्यायालय से मांग की कि इस मामले में एक स्वतंत्र जांच कमेटी बनाई जाए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
प्रदेश में यह अपनी तरह का पहला मामला है जब जनहित याचिका दायर कर जल समस्या को लेकर सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया।
भ्रष्टाचार में मौसेरे भाई नेता और अफसर
जिस राज्य में सत्ता और ब्यूरोक्रेसी की जुगलबंदी हो जाए तो मानिए सबकुछ उचित नहीं चल रहा है। जहां विचारों, निर्णयों, प्राथमिकताओं में मनभेद न हो लेकिन मतभेद जरूर हो तो समझा जाना चाहिए कि लोकतंत्र सही दिशा में है। लेकिन मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार को लेकर सबकुछ आपसदारी का मामला चल रहा है। यह यूं है कि एक तरफ भ्रष्टाचार को लेकर इंटोलरेंस की नीति है तो दूसरी तरफ कार्रवाई को लेकर भारी उदासीनता।
जब मध्यप्रदेश में जीरो टॉलरेंस की नीति है तो भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्री, विधायक और अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट पिछले 9 साल से विधानसभा में पेश क्यों नहीं की जा रही है? इस सवाल को लेकर नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने भोपाल में प्रदर्शन किया। मंच के अध्यक्ष पी. नाज पांडे का मानना है कि जनता को यह जानने का हक है कि लोकायुक्त की पिछले 9 सालों की जांच रिपोर्ट में मध्य प्रदेश के कौन से मंत्री, विधायक और अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोपों में शामिल हैं और उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है। मध्यप्रदेश एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पिछले 9 सालों में लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
अभी तो शांति से अपनी बात रखने आए मंच कार्यकर्ताओं ने मन बनाया है कि अगर यह रिपोर्ट नहीं दी जाती है तो पूरे प्रदेश में आंदोलन होगा और जरूरत पड़ने पर इसे कोर्ट में भी ले जाया जाएगा। अब यह मंच पर निर्भर है कि वह कितनी लंबी लड़ाई लड़ता है। मुद्दा तो यह भी है कि कहीं यह लड़ाई नौ साल जितनी लंबी तो नहीं खींच जाएगी?