केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को जब वर्ष 2024 को आम बजट पेश किया तो मध्य प्रदेश को बहुत कुछ पाने की उम्मीद थी। इन उम्मीदों के बदले मध्य प्रदेश ने क्या पाया? इस सवाल की पड़ताल करते हैं तो दिलचस्प उत्तर मिलते हैं। प्रदेश ने 29 के 29 सांसद जिताए लेकिन हाथ क्या आया? … शून्य। यह एक राजनीतिक टिप्पणी है लेकिन जब बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की जाती है तो बीजेपी को सारी की सारी सीटें जितवाने वाले प्रदेश का खाली हाथ रहना अखरता ही है।
अब रही आर्थिकी की दृष्टि से देखने की तो एक दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश की तारीफ से आस बंधी थी कि इन्हीं जैसी अन्य योजनाओं की मांग पूरी होगी लेकिन यहां भी मध्य प्रदेश के हाथों में कुछ खास नहीं आया है। जो सबको मिला है वह मध्य प्रदेश को भी मिला है। यानी, केंद्र से अपने हिस्से का अंश, योजनाओं का पैसा पाने के लिए मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार को जोर लगाना पड़ेगा। महंगाई और रोजगार के मुद्दे पर विपक्ष के निशाने पर आई मोदी सरकार ने अपने बजट में योजनाओं का गुलदस्ता रखा जरूर है लेकिन अपने हिस्से के फूल (लाभ) पाने के लिए प्रदेश सरकार को अच्छी खासी मशक्कत करनी होगी।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट में ‘गरीब’, ‘महिलाएं’, ‘युवा’ और ‘अन्नदाता’ पर फोकस किया था, केंद्रीय बजट भी उसी दिशा में आगे बढ़ा है। सरकार ने अपनी 9 प्राथमिकताएं तय की हैं: कृषि में उत्पादकता और अनुकूलनीयता, रोजगार और कौशल प्रशिक्षण, समावेशी मानव संसाधन विकास और सामाजिक न्याय, विनिर्माण और सेवाएं, शहरी विकास, ऊर्जा सुरक्षा, अवसंरचना (Infra), नवाचार, अनुसंधान और विकास, (Innovation, Research & Development) और अगली पीढ़ी के सुधार (Next Generation Reforms)। इस साल कृषि और संबद्ध क्षेत्र के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। राज्य सरकारों और उद्योग के सहयोग से कौशल प्रशिक्षण के लिए केंद्र द्वारा प्रायोजित एक नई योजना की घोषणा की गई है। इस वर्ष ग्रामीण अधोसंरचना सहित ग्रामीण विकास के लिए 2.66 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान रखा है।
मतलब साफ है कि प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में देश भर में कार्य किया जाएगा। जैसे अन्य राज्यों में होगा, वैसा ही मध्य प्रदेश भी होगा। यानी, एक तरफा जीत या केंद्र की योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन पर मध्य प्रदेश को शाब्दिक शाबाशी भले ही मिल जाए उसका आर्थिक हित नहीं साधा जाएगा। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि बजट से एकदिन पहले सोमवार को संसद में देश का आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने मध्यप्रदेश के नवाचारों की सराहना की थी। नदी जोड़ो परियोजनाएं और इंदौर का सीएनजी प्लांट ऐसे कार्य हैं जिसने सरकार की उपलब्धियों में सितारें जड़े हैं। आर्थिक सर्वेक्षण में नीति आयोग के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल के इंडेक्स 2023-24 का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि जो दस नए राज्य सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल हासिल करने में आगे रहे हैं उनमें मध्यप्रदेश भी है। 2018 से 2023-24 के बीच मध्यप्रदेश 15 अंकों के साथ सर्वाधिक तेजी से आगे बढ़ते राज्यों में शुमार हुआ है। भावांतर भुगतान योजना की चर्चा करते हुए मध्य प्रदेश को किसान हितैषी नीति लागू करने वाला राज्य बताया गया।
इस प्रशंसा के बाद भी मध्य प्रदेश के हाथ खाली ही हैं। ये खाली हाथ अखरने वाले हैं क्योंकि मध्य प्रदेश की सरकार पर लगातार कर्ज बढ़ता जा रहा है। इस वर्ष 3 लाख 65 हजार 67 करोड़ रुपए का मध्य प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने विकास कार्यों के लिए कर्ज लेने को सामान्य बताया था। मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना जैसी लोक लुभावन योजना के कारण खजाना संकट से घिर गया है। एक तरफ, इस योजना को चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है तो दूसरी तरफ, बड़ी-बड़ी विकास योजनाएं भी कर्ज पर निर्भर है। यही कारण है कि प्रदेश की मोहन यादव सरकार ने सबसे भारी कर्ज लेने के संकेत दिए हैं। यह कर्ज 88 हजार 540 करोड़ रुपए का हो सकता है। सरकार 73 हजार 540 करोड़ रुपये बाजार से और 15 हजार करोड़ रुपये केंद्र सरकार से कर्ज लेगी। कर्ज की यह राशि पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 38 प्रतिशत ज्यादा है। बीजेपी सरकार ने साल 2023-24 में 55 हजार 708 रुपए का कर्ज लिया था।इस वर्ष की बजट उम्मीदों में मध्य प्रदेश को उज्जैन के लिए विशेष पैकेज का इंतजार था। खबरें बताती हैं कि राज्य सरकार ने केंद्र के अंश में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के अलावा उज्जैन के लिए विशेष धनराशि की मांग रखी थी।
केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार में गया स्थित विष्णुपद मंदिर और बोधगया में महाबोधि मंदिर को विश्वस्तरीय तीर्थ स्थल और पर्यटन गंतव्यों के रूप में विकसित करने के लिए सहायता प्रदान करने, ओडिशा को एक उत्कृष्ट पर्यटन गंतव्य को बनाने के लिए सहायता प्रदान करने जैसी घोषणा की लेकिन उज्जैन को कुछ नहीं मिला जबकि 2028 के सिंहस्थ कुंभ मेले के लिए तैयारियों आरंभ हो गई हैं। सिंहस्थ के पहले उज्जैन, इंदौर संभाग को धार्मिक आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने के लिए केंद्र से 20 हजार करोड़ रुपए के विशेष पैकेज मांगा गया था। यह मांग अब मांग बन कर ही रह गई है।
केंद्र सरकार ने आधारभूत विकास के लिए मध्य प्रदेश को 23-24 में 60 हजार 689 करोड़ रुपए दिए थे। इस बार इससे ज्यादा राशि की उम्मीद है। विशेष केंद्रीय सहायता के अंतर्गत 10 हजार 910 करोड़ के प्रस्ताव प्रदेश की तरफ से केंद्र को भेजे गए थे। इनमें से 4 हजार 318 करोड़ रुपए की स्वीकृति पहले ही हो चुकी है अब शेष राशि 6 हजार 592 करोड़ रुपए चाहिए। राज्य शासन उदय योजना के तहत विद्युत वितरण कंपनियों के 13 हजार 365 करोड़ के कर्ज की वसूली नहीं कर पाया है। इस कारण केंद्र सरकार ने बिजली कंपनियों के बाजार से लोन लेने की सीमा को घटा दिया है। राज्य सरकार ने अब इस कर्ज की सीमा को बहाल करवाने की कोशिशों में लगा हुआ है।
बजट प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि हम राज्यों को उनकी विकास प्राथमिकताओं के लिए उसी पैमाने की सहायता उपलब्ध कराएंगे। इस वर्ष भी 1.5 लाख करोड़ के दीर्घावधि ब्याज रहित ऋण का प्रावधान किया गया है। मतलब, कर्ज देने का पूरा प्रावधान है। इस कर्ज को उतारने की राहों में बड़े कांटे हैं। आर्थिक सुधारों और अर्थ व्यवस्था में आए बदलावों के बाद अब जीएसटी के तहत टैक्स की राशि केंद्र के पास जाती है और राज्यों को केंद्र हिस्सा देता है। केंद्र और राज्य में बीजेपी के सत्ता में रहने के बाद भी प्रदेश की बीजेपी सरकार को शिकायत रही है कि केंद्र से उसे पूरा हिस्सा नहीं मिलता है। केंद्र से हिस्से का पैसा पाने के लिए मंत्रियों को दिल्ली दौड़ लगानी पड़ती है। अब भी यही होगा।
केंद्रीय बजट पर समग्रता में तारीफ की जा रही है लेकिन मध्य प्रदेश के हिस्से में उतना लाभ नहीं आया है जिसकी उम्मीद थी या कहिए मध्य प्रदेश जिसका हकदार था। मध्य प्रदेश के केंद्र की योजनाओं को सफलता पूर्वक लागू किया है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी को राजनीतिक लाभ भी दिया है लेकिन केंद्र सरकार को राजनीतिक मजबूरियों चलते बिहार और आंध्र प्रदेश का ध्यान रखना याद रहा, मध्य प्रदेश को उसके काम और राजनीतिक वफादारी का पुरस्कार देना विस्मृत हो गया।