भारतीय संविधान स्टेट की परिभाषा वेलफेयर स्टेट यानी भलाई करने वाले राज्य के रूप में करता है। जिसमें लोकतंत्र की बुनियाद जनता है। लोकतंत्र में सरकार जनता की, जनता द्वारा, जनता के लिए चुनी जाती है, इसीलिए उसके चुने गए नुमाइंदे जनप्रतिनिधि कहलाते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था मानवीय मूल्यों की निशानी है, जो कई हजार वर्षों के मानव के सामाजिक उन्नति को दर्शाती है। लेकिन मध्यप्रदेश अजब है, यहां राजनीति की धारा संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों के विपरीत ही बह रही है, कोरोना महामारी के संक्रमण काल मे जब सभी राजनैतिक दलों, सत्तापक्ष और विपक्ष को मिल कर जनता को इस आपदा से लड़ने की तैयारी करनी थी, तब मध्यप्रदेश में विधायकों की खरीद-फरोख्त कर एक चुनी हुई सरकार को गिरा दिया जाता है। फिर नई सरकार के मुखिया अपने आप को टाइगर बताने लगते हैं।
यह टाइगर सरकार के 100 दिन बीत जाने पर मंत्रिमंडल नहीं बना पाता। अमूमन 100 दिन बीत जाने पर भारत में सरकारें अपने 100 दिन के कार्य का ब्यौरा जनता के बीच रखती रही हैं। पत्रकारीय भाषा में नई नवेली सरकार की इस समयावधि को 'हनीमून पीरियड' कहा जाता है। इस समयावधि में सरकार का प्रयास होता है कि जिन मुद्दों और वादों पर जनता ने उसे चुना है उसकी रिपोर्ट पेश कर सकारात्मक माहौल बनाया जाए। जिससे जनता में विश्वास पैदा हो कि जिस सरकार को उन्होंने चुना है वो सही दिशा में काम कर रही है। लेकिन मध्यप्रदेश तो अजब है गजब है 100 दिन में बाद मंत्रिमंडल का विस्तार होता है और उसके भी दस दिन बाद विभागों का बंटवारा। इसी बीच मंत्रिमंडल विस्तार के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस को दगा देकर भाजपा में शामिल हुए 14 नेताओं को मंत्री बना दिया जाता है। फिर मध्यप्रदेश की राजनीति में एक और नया टाइगर पैदा हो जाता है। अब मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में 2 टाइगर एक सरकार के मुखिया और एक 14 नए नवेले मंत्रियों के मुखिया हैं।
अजब-गजब मध्य प्रदेश का उदाहरण दो गतिविधियों से समझा जा सकता है। जिसे मानवीय एवोल्यूशन यानी क्रमागत उन्नति के किसी खोज और जीवविज्ञान की किसी किताब में नहीं ढ़ंढ़ा जा सकता है। वो है इंसान का टाइगर बनने की तरफ़ बढ़ना। एक नेता जो बिना जनता का भरोसा हासिल किए मुख्यमंत्री बन बैठा और ख़ुद को टाइगर बता रहा है। दूसरा 14 भगोड़ों को मंत्री बनवाकर टाइगर होने का ताल ठोंक रहा है। राजनीतिशास्त्र के छात्र भविष्य में क्रमागत विकास के इन मूल्यों पर ज़रूर रिसर्च करें।
इसी लोकतांत्रिक मूल्यविहीन सरकार की बानगी गुना में देखने को मिली, जहाँ एक गरीब दलित किसान परिवार की खड़ी फसल को जेसीबी लगाकर उजाड़ दिया गया। राजकुमार अहिरवार एक बटाई किसान है। बटाई किसान का अर्थ होता है जो किराए पर भूमि पर खेती करे और जब फसल कट जाए तो भूमि मालिक को एक हिस्सा किराए के रूप में दे देता है। राजकुमार अपने परिवार के साथ एक झोपड़ी में उस जमीन पर रह रहा था। लाखों रुपए का कर्ज लेकर सोयाबीन की बुआई उसने खेत में की थी। उसके 6 छोटे-छोटे बच्चे हैं, जिनका पालन-पोषण करना है। राजकुमार जिस भूमि पर खेती कर रहा है वो सरकारी है वहाँ मॉडल कॉलेज बनना है, तो जिला प्रशासन ने कब्जा छुड़ाने के आदेश कर दिये। जब अमला खेत पर पहुंचा तो राजकुमार ने विनती की कि हम तो बटाई में खेती कर रहे हैं, जमीन सरकारी है या नहीं हमें नही मालूम, लाखों का कर्जा लेकर फसल बोई है, फसल कट जाए हम जगह छोड़ कर चले जाएंगे। अब जिला प्रशासन जिसके सामने एक गरीब किसान हो और वो भी दलित तो नियम पहाड़ बन जाते हैं। जिसमे से दया करुणा और अंग्रेजी में फ्लेक्सिबिलिटी समझ नही आती। ऐसे व्यक्ति के प्रति कार्यवाही करते समय अधिकारियों को अपने अधिकारों और शक्तियों का पूरे 100 प्रतिशत एहसास हो जाता है। इस समय वो इतने सेफ ज़ोन में होते हैं कि इन पर कार्यवाही करने पर कोई राजनैतिक दवाब नहीं होगा। विभाग की शाबाशी ही मिलनी है और वैसे भी उनके क्षेत्र से के लिए तो दो-दो टाइगर हैं। बस इसके बाद राजकुमार अहिरवार की फसलों पर जेसीबी चलवा दी जाती है। आनन फानन में राजकुमार झोपड़ी में रखा कीटनाशक पी लेता है। उसके साथ उसकी पत्नी भी कीटनाशक पी लेती है और दोनों वही बेहोश हो जाते हैं। चारों तरफ चीख पुकार मच जाती है। माता पिता को इस हालत में देख मासूम रोते हुए उन्हें उन्हें बाहों में भर लेते हैं। धन्यवाद उन मीडिया बंधुओं का जिनके कैमरे में वो तस्वीरे कैद हो गईं, जिन्हें देख किसी भी मनुष्य का दिल पसीज सकता है। इन्हीं तस्वीरों ने पूरे सोशल मीडिया को झकझोर दिया। इसी बीच राजकुमार का भाई भी आ जाता है, भाई और भाभी की ऐसी हालत देख पुलिस वाले को धक्का दे देता है। जिसके बाद वही होता है जिसके लिए हमारी पुलिस जानी जाती है, लाठी डंडे जो मिले सब इस्तेमाल कर लिए।
गुना में जो प्रताड़ना राजकुमार के परिवार ने झेली वो एक घटना नही है एक व्यवस्था है, जो कभी कभी सोशल मीडिया की वजह से हमें दिख जाती है। इस व्यवस्था का कोई एक जिम्मेदार व्यक्ति नहीं है। यह तो एक चेन समान है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं है। आप जहां से पकड़ें वहीं से घुमाना चालू कर सकते हैं। अभी राजकुमार एवं उनकी पत्नी अस्पताल में हैं, उनपर मुकदमा दर्ज हो गया है।
अब सोशल मीडिया पर वायरल हुई इस घटना ने उपचुनाव क्षेत्र होने की वजह से दोनों टाइगरों को परेशान कर दिया। ट्विटर पर टॉप ट्रेंड होने के 9 घंटे में ही एसपी और कलेक्टर का ट्रांसफर कर दिया। 6 पुलिसकर्मी सस्पेंड कर दिए गए। लेकिन ना तो पीड़ित परिवार को मुआवजे की कोई सूचना है और ना ही संवेदनशीलता का कोई उदाहरण। उल्टा विपक्षी नेताओं पर आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है।
बहरहाल, सोशल मीडिया पर इस घटना को ट्रेंड कराकर पूरे देश का ध्यान खींचनेवाले सभी जागरूक नागरिकों का धन्यवाद। जिन्होंने इस घटना की मार्मिकता को समझा और शासन को कार्रवाई के लिए मजबूर किया। राजनीतिक दलों ने ख़ासकर, कांग्रेस ने घटना का संज्ञान लिया और पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपनी पार्टी के सात सदस्यों को पीड़ित परिवार से मिलकर जांच रिपोर्ट तैयार करने को कहा। कांग्रेस ने पीड़ित परिवार को डेढ़ लाख का चेक भी दिया। फिर भी सत्ता पक्ष से यह सवाल बचा रह गया है कि हम वेलफ़ेयर स्टेट से जो उम्मीद रखते हैं क्या वो पूरा होगा? या दो टाइगरों के राज में जनता भेड़ बना दी जाएगी।