मध्य प्रदेश में मोहन सरकार को बने पौने दो साल हो गए हैं लेकिन निगम मंडलों की नियुक्तियों पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। बीजेपी ने तय समय से देरी से ही सही लेकिन जुलाई में नया प्रदेश अध्यक्ष भी बना लिया है। नए प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल अपनी कार्यकारिणी नहीं बना पाए हैं। बीजेपी जिला अध्यक्ष जनवरी में घोषित हो गए थे लेकिन छह माह बाद भी उनकी कार्यकारिणी नहीं बन पाई थी।
फिर बीजेपी संगठन ने तय किया कि दो-दो पदाधिकारी जिलों में जाकर जिला कार्यकारिणी गठन के लिए आम सहमति बनाएंगे, ताकि निर्विरोध कार्यकारिणी का गठन हो सके। यह कवायद जिलों तक फैले असंतोष को कम करने के लिए की गई। जिलों में विधायकों में प्रभाव को लेकर संघर्ष है। जिलाध्यक्ष दबाव में है कि किस विधायक की सुने और किसी की नहीं। कमोबेश यही स्थिति प्रदेश कार्यकारिणी को लेकर भी है। वर्चस्व का संघर्ष ऐसा कि बीजेपी अभी भोपाल ग्रामीण, बैतूल, सीधी, देवास, मऊगंज, सागर ग्रामीण, हरदा, मंडला, बालाघाट की कार्यकारिणी ही घोषित कर पाई। बड़े जिले और बड़े नेताओं के प्रभाव वाले जिले बाकी हैं।
सभी नियुक्तियां एक-दूसरे से जुड़ी हैं। कुछ नेता संगठन में पद पाएंगे वहीं कुछ को निगम-मंडलों का लाभ दिया जाएगा। इसी संघर्ष में प्रदेश संगठन कुछ कर नहीं पा रहा है। असंतोष की खबरें जब दिल्ली तक पहुंची तो पहली सितंबर को पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष खासतौर पर भोपाल आए। माना गया कि दो दिनों की इस यात्रा में वे संगठन व निगम मंडलों में नियुक्तियों पर बातचीत करेंगे। सीएम हाउस में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद और प्रभारी महेंद्र सिंह के बीच चर्चा को राजनीतिक नियुक्तियों से जोड़ा गया। पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा व सीधी विधायक रीति पाठक समेत अन्य नेताओं से बीएल संतोष की बंद कमरे में हुई बातचीत को इन्हीं नियुक्तियों का संकेत माना गया।
सभी को उम्मीद थी कि बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष की अचानक भोपाल यात्रा निगम-मंडलों की नियुक्ति पर निर्णायक होगी। बीएल संतोष को वापस दिल्ली पहुंचे एक सप्ताह हो गया लेकिन नियुक्तियों को लेकर उठती सुगबुगाहटें भी बुलबुलों की तरह शांत हो गई हैं। अब बीजेपी प्रदेश दफ्तर में सूचना मांगने के लिए आने वाले फोन कॉल्स पर भी झल्ला कर जवाब मिलता है कि जब मैं अध्यक्ष बन जाऊं तब पूछ लेना शायद तब उत्तर दे पाऊं कि निगम मंडल में नियुक्ति कब होगी।
मंत्री बनने की चाह में मछली का शिकार
हिंदुओं लड़कियों की प्रताड़ना, सरकारी जमीन कब्जा सहित करोड़ों का साम्राज्य बना चुके भोपाल के मछली परिवार पर बीजेपी सरकार सख्त हुई है। पूरा मामला बीजेपी की राजनीति को सूट करता है लेकिन इस बार तो मछली के बहाने बीजेपी के नेता ही शहमात का खेल रहे हैं। मछली पर कार्रवाई से भी बीजेपी की आंतरिक राजनीति सतह पर आ गई है। उन नेताओं पर हमले हो रहे हैं जिनके प्रश्रय में मछली जैसे लोग ताकतवर बनते हैं।
सपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मनोज यादव ने प्रेस कांफ्रेंस कर आरोपी शारिक मछली को प्रदेश के मंत्री विश्वास सारंग का नजदीकी बताया। उन्होंने कहा कि मछली पर सरकार ने कार्रवाई के लिए मैं मुख्यमंत्री को धन्यवाद देता हूं, लेकिन यह भी कहता हूं कि यह महज दिखावटी कार्रवाई है। शारिक के भाई शहरयार को बीजेपी ने निकाला नहीं बल्कि केवल इस्तीफा लिया गया है। मछली के पीछे जो असली मगरमच्छ हैं उनपर कार्रवाई की जानी चाहिए। प्रदेश के जो मंत्री बुलेट पर उसे पीछे बैठाकर घूम रहे हैं, कार में घुमा रहे हैं, अपने मोबाइल से सेल्फी ले रहे हैं, उनपर कार्रवाई कब होगी। आपके मंत्री पर आरोप लग रहे हैं तो पहले उनका इस्तीफा लीजिए, उनकी जांच होनी चाहिए।
सपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ. मनोज यादव ने कहा कि शारिक मछली का सहकारिता का अवैध कारोबार 15 सालों से कैसे चल रहा था? सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग के विभाग ने अब तक अवैध समितियों को निरस्त क्यों नहीं किया? उन्होंने कहा कि मुझे सूत्रों से मालूम चला है कि प्रदेश के किसी मंत्री के बच्चों की फीस भी शारिक मछली के खातों से चुकाई जाती थी। अभी तक उनके खातों की जांच क्यों नहीं की गई है? हालांकि सपा प्रदेशाध्यक्ष ने संबंधित मंत्री का नाम नहीं बताया।
सपा का यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब बीजेपी के नेता ही मछली गैंग के प्रश्रयदाता नेताओं को घेर रहे हैं। भोपाल के बीजेपी सांसद आलोक शर्मा ने इस मामले पर पूछे गए सवाल पर मीडिया से कहा है कि मछली का साम्राज्य बनने देने वाले अफसरों पर कार्रवाई होनी चाहिए। सांसद आलोक शर्मा ने नेताओं का नाम नहीं लिया लेकिन इसके राजनीतिक मंतव्य निकाले जा रहे हैं। साफ है कि अफसरों पर कार्रवाई होगी तो नेता कैसे बच जाएंगे? इस बयान को बीजेपी की अंदरूनी राजनीति से प्रेरित माना गया। इरादे हैं कि भोपाल से एक मंत्री की कुर्सी खाली हो तो दूसरे विधायक को अवसर मिले। यह हमले इसलिए भी तेज हुए हैं क्योंकि इनदिनों मंत्रिमंडल के विस्तार की अटकलें राजनीतिक आकाश पर उड़ रही हैं।
अब सुरेंद्र पटवा के मामले में भी क्या बोलेगी बीजेपी
बीजेपी में दो विधायकों के कानूनी प्रक्रिया में घिरने को भी आंतरिक राजनीति से ही जोड़ कर देखा जा रहा है। अरबपति विधायक संजय पाठक की कंपनियों पर खनन घोटाले के कारण 443 करोड़ की पैनल्टी लगाई गई है। आरोप है कि 2004 से 2017 तक खदानों से तय सीमा से ज्यादा उत्खनन किया गया। मामला हाई कोर्ट में है और बीजेपी विधायक ने इस केस को सुन रहे जज को फोन कर मामला संभालने की कोशिश की। इससे नाराज जज ने न केवल खुद को केस से अलग कर लिया बल्कि फैसले में भी यह बात लिख दी। एक विधायक द्वारा हाई कोर्ट जज को प्रभावित करने का यह अपनी तरह का अनूठा मामला है। इस पर कार्रवाई तो दूर बीजेपी ने इसे पर्सनल मामला बता कर खुद को अलग कर लिया।
अब बीजेपी विधायक व पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटवा की बारी है। भोजपुर से विधायक सुरेंद्र पटवा और उनकी पत्नी मोनिका पटवा की कंपनी ने बैंक ऑफ बड़ौदा से 2014 में 36 करोड़ का ऋण लिया था। आरोप है कि 29.41 करोड़ राशि गलत दिशा में खर्च की गई थी। सीबीआई ने छापे में संदिग्ध दस्तावेज जब्त किए गए थे। पटवा के खिलाफ चेक बाउंस के कई मामले भी लंबित है। कोर्ट बार-बार समन भेज रही है लेकिन वे कोर्ट में पेश होने से बच रहे हैं। इस कारण कोर्ट ने कहा है कि उन्हें गिरफ्तार कर लाया जाए। इस पर मामले पर भी बीजेपी संगठन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। सवाल उठ रहा है कि क्या इस धोखाधड़ी को भी पर्सनल मामला बता कर पार्टी खुद को किनारे कर लेगी?
खाद का संकट और बेतहाशा शराब, सब भगवान भरोसे
मध्यप्रदेश में कैसा विरोधाभास है कि किसान खाद के लिए परेशान हो रहे हैं तो शराब इतनी सहजता से मिल रही कि जगह-जगह खुली शराब दुकानें आम जनता त्रस्त है। सरकार इन दोनों संकटों को खारिज कर रही हैं लेकिन बीजेपी के ही दो नेताओं के पत्र बताते हैं कि सरकार की सफाई झूठी है।
रीवा, सतना, दमोह, सीहोर, भिंड सहित कई जिलों से खाद के लिए किसानों की लंबी कतारों की तस्वीरें आई हैं। रीवा में खाद लेने पहुंचे किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया। इसके बाद सतना से बीजेपी सांसद गणेश सिंह ने मोहन सरकार को एक पत्र लिखा। चार बार के सांसद गणेश सिंह ने लिखा कि जिले में खाद वितरण की व्यवस्था पारदर्शी नहीं है। किसान दर-दर भटक रहे हैं जबकि निजी दुकानों पर महंगे दामों पर खाद बिक रही है। उन्होंने कहा कि प्रशासन चाहे तो वे और उनकी पार्टी हर तरह से इसमें सहयोग करने के लिए तैयार है।
दूसरी तरफ ग्वालियर नगर निगम वार्ड 58 की भाजपा पार्षद अपर्णा पाटिल ने शहर में बढ़ रही शराबखोरी और नशाखोरी पर लगाम के लिए अपनी पार्टी के नेताओं पर नहीं बल्कि सीधे भगवान पर भरोसा दिखाया। उन्होंने अचलेश्वर महादेव मंदिर को लिखे पत्र में लिखा है कि आबकारी विभाग की लापरवाही के कारण ग्वालियर के सार्वजनिक स्थलों पर शराबखोरी का चलन बढ़ता जा रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर महिलाओं, बच्चियों और आम लोगों की सुरक्षा पर पड़ रहा है। उन्होंने महादेव से प्रार्थना की है कि वे अधिकारियों को सद्बुद्धि दें ताकि शहर को इस बुराई से मुक्त कराया सके।
एक तरफ सांसद गणेश सिंह का पत्र दूसरी तरफ बीजेपी पार्षद का भगवान शंकर को ज्ञापन। ये कदम बता रहे हैं कि प्रदेश में व्यवस्था के नाम पर सबकुछ भगवान भरोसे है।