मध्यप्रदेश भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर पांच महीने से टलते आ रहे इस चुनाव की तिथि को लेकर अब तक असमंजस खत्म नहीं हुआ है। माना जा रहा था कि पचमढ़ी में हुए होने वाले भाजपा प्रशिक्षण शिविर के बाद अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी लेकिन अब तो वह भी खत्म हो गया। इस दौरान इतना जरूर हुआ है कि संभावित अध्यक्ष के नामों में कुछ दावेदार और जुड़ गए हैं।
वर्तमान अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल बढ़ा नहीं है। लेकिन उनके स्थान पर नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए दावेदारों में पं. गोपाल भार्गव, डॉ. नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह, फग्गन सिंह कुलस्ते के अलावा हेमंत खंडेलवाल, सुमेर सिंह सोलंकी के नाम लंबे समय से चर्चा में हैं। अब खरगोन से सांसद गजेंद्र सिंह पटेल का नाम और जुड़ गया है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद मंत्री विजय शाह अपने एक बयान के कारण घिर गए हैं। माना जा रहा है कि पार्टी में आदिवासी लीडरशिप को नई दिशा देने के लिए गजेंद्र सिंह का नाम आगे किया गया है।
इन सब नामों पर चर्चा बहुत दिनों से हो रही है लेकिन पार्टी को नया अध्यक्ष नहीं मिल रहा है। पूरा संगठन दम साधे इंतजार कर रहा है कि नया अध्यक्ष काम संभाले तो गतिविधियां आगे बढ़े। कार्यकारिणी में बदलाव के बाद नई जिम्मेदारी पाने को उत्सुक नेता लगातार निराश हो रहे हैं। जनवरी में पार्टी को नया अध्यक्ष मिल जाता तो व्यवस्था बदल जाती और खाली नेताओं को काम मिल जाता। नेता नई भूमिका मिलने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन प्रक्रिया है कि पूरी नहीं हो रही है। हालांकि, बीजेपी नेतृत्व बार-बार कह रहा है कि चुनाव अपनी तय प्रक्रिया में पूरे होंगे। अध्यक्ष चुनने में देरी हुई है लेकिन जल्द ही यह प्रक्रिय पूरी होगी।
कार्यकर्ताओं की अधीरता को भांपते हुए कांग्रेस ने भी बीजेपी अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी अध्यक्ष चुनने में देरी इसलिए हो रही है क्योंकि अभी ऊपर से पर्ची नहीं आई है। बीजेपी में सारे निर्णय ऊपर से होते हैं। कार्यकर्ता केवल निर्णय सुनने के लिए हैं। जब ऊपर से एक नाम की पर्ची आएगी, तब कार्यकर्ताओं को उसे अपना अध्यक्ष स्वीकार करना होगा। इन राजनीतिक बयानों से इतर मुख्य बात यह है कि बीजेपी कार्यकर्ता अपने नए अध्यक्ष को लेकर कयास लगा रहे हैं और कानाफूसी का दौर जारी है।
मोहन की गाय बीजेपी के लिए दुधारू
वर्तमान राजनीतिक तौर तरीकों को देख कर यह कहना उचित नहीं लगता कि दिल्ली दूर है। असल में अब राजनीतिक दल चुनाव के लिए 5 सालों का इंतजार नहीं करते बल्कि पूरे पांच साल ही पार्टियां इलेक्शन मोड में रहती है। मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार भी कुछ इसी फार्मूले पर चल रही है। अभी विधानसभा और लोकसभा चुनाव दूर है लेकिन मोहन सरकार ने बड़े वोट बैंक को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर काम करना शुरू कर दिया।
बीते सप्ताह मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लाड़ली बहना योजना की राशि बढ़ाने की घोषणा कर इस योजना पर जारी असमंजस को निर्मल साबित करने का प्रयास किया। साथ ही किसानों को प्रभावित करने के लिए गाय को केंद्र में रख कर योजना की घोषणा की गई है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि पशुपालन विभाग के साथ ही अब गोपालन विभाग भी जोड़ा जाएगा। मुख्यमंत्री पशुपालन विकास योजना का नाम अब डॉ. भीमराव अंबेडकर दुग्ध उत्पादन योजना होगा।
बीजेपी जहां गौवंश के लिए किए काम पर अपनी सरकार की तारीफ कर रही है। वहीं कांग्रेस ने सरकार से कई सवाल पूछे हैं। आपको याद होगा शिवराज सिंह चौहान गौ-कैबिनेट भी बना चुके हैं। सवाल यह है कि तमाम बातों के बाद भी गौवंश तो सड़कों पर दिखाई देता है। फिर भी, कृष्ण, गीता के बाद अब गौ पर फोकस करने के पर यह विश्लेषण उचित ही है कि गाय को राजनीति के केंद्र में ला कर मोहन सरकार ने अगले चुनावों का नरेशन सेट करने की ओर कदम बढ़ा दिया है।
भेल के लिए आवाज नक्कार खाने में तूती
भोपाल में स्थापित भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड यानी भेल का अपना महत्व है। यह भारत के औद्योगिकीकरण की मिसाल है तो भोपाल की दृष्टि से इसका अपना सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय महत्व है। भेल में कार्यरत श्रमबल की विविधता को देखते हुए इसे लघु भारत की संज्ञा दी गई थी। एक समय था जब यह गोविंदपुरा विधानसभा सीट के निर्धारक मतदाताओं वाला क्षेत्र था और इसी कारण भेल के राजनीतिक समीकरण गोविंदपुरा विधानसभा सीट के निर्वाचन को प्रभावित करती थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री बने बाबूलाल गौर भेल के श्रमिक थे और श्रमिक राजनीति के आधार पर ही सबसे ज्यादा आठ बार इसी सीट से विधानसभा के लिए चुने गए। भेल कर्मचारियों के समर्थन के कारण ही वे जीत का अपना ही रिकार्ड भी तोड़ते रहे।
अब क्षेत्र के विस्तार, परिसीमन और बदले समीकरणों के बाद भेल के पास यह राजनीतिक ताकत नहीं रह गई है। इधर, केंद्र और बीजेपी में बीजेपी की सत्ता के बाद यह संभावना बढ़ गई है कि भेल से जमीन वापस लेने का राज्य सरकार के प्रस्ताव को स्वीकृत कर लिया जाए। राज्य सरकार ने यह काम किया भी है। प्रस्ताव तैयार किया गया है कि भेल की खाली पड़ी जमीन वापस लेकर देश की सबसे बड़ी हाईटेक सिटी बनाई जाए। यह सिटी गुजरात की गिफ्ट सिटी, दिल्ली की एयरोसिटी और मुंबई की बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स की तर्ज पर विकसित की जाएगी। कहा जा रहा है कि इसका उद्देश्य मध्य प्रदेश में राजेगार पैदा करने के साथ एक ही स्थान पर रहवासियों और निवेशकों को सभी सुविधाएं देना है।
मगर इस विकास योजना का साइड इफेक्ट यह है कि ऐसा होने पर भेल का स्वरूप खत्म हो जाएगा। भेल केवल पंचरत्न कंपनी ही नहीं है बल्कि यहां की हरियाली भोपाल के फेफड़े कही जाती है। यहां हाईटेक सिटी बनेगी तो इस हरियाली का उजड़ना तय है। फिलहाल, इस तरफ तो ध्यान नहीं गया है लेकिन भेल के स्वरूप को लेकर चिंतित कर्मचारी इस योजना के विरोध में उतर आए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि विकास की नींव जनता के हित और औद्योगिक स्थिरता पर होनी चाहिए। इससे पहले ही अमराई में झुग्गी विस्थापन के लिए 200 एकड़ जमीन हाउसिंग बोर्ड को आवंटित की जा चुकी है। भेल ने आईएसबीटी के लिए भी जमीन दी है। भेल का आकार बचाने की कोशिशें तो शुरू हुई है लेकिन विकास के शोर में उनकी आवाज तूती की तरह ही हो गई है।
मैदान में ताकत के लिए कांग्रेस का दलित कनेक्ट
एमपी बीजेपी सरकार और संगठन यदि महिला, किसान, युवा और कर्मचारियों में अपना दायरा बढ़ाने के लिए कई पहलुओं पर काम कर रहा है तो कांग्रेस भी मैदानी ताकत बढ़ाने के लिए सक्रिय है। ग्वालियर हाईकोर्ट में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने का मामले पर संविधान सत्याग्रह कर कांग्रेस अपनी सक्रियता बढ़ा रही है। मंगलवार को कांग्रेस नेताओं ने दलितों के साथ बैठकर भोजन किया। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा है कि कांग्रेस का दलितों के साथ भोजन कर एकजुट होने का संदेश है। जिनके साथ भोजन कर रहा हूं वो संविधान के प्रहरी है।
कांग्रेस चुनाव के पहले सक्रिय हो गई है। यह निर्णय मैदान में ताकत से खड़े रहने की कांग्रेस कोशिशों का अगला चरण है। इस तरह के आयोजन कार्यकर्ताओं को एकजुट रख सकें तो यह बीजेपी के कार्यक्रमों के समानांतर बेहतर प्रयास हो सकता है। यदि प्रदेश कांग्रेस अपने लक्ष्य में कामयाब होती है तो तदलित राजनीति की दृष्टि से भी यह कांग्रेस का रणनीतिक कदम है।