ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुख राशी

श्री राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने कहा है कि सृष्टि के सम्पूर्ण जीव ईश्वर के अंश हैं। ईश्वर अंशी है। अंश में अंशी के गुण आते ही हैं। अब हम अपने में अवलोकन करें कि यदि हम ईश्वर के अंश हैं तो हमारे भीतर भी ईश्वर का गुण होना चाहिए।

उस परमेश्वर ने हमें दो ऐसे गुण दिए हैं जो उनका अपना गुण है। जिसका अनुभव हम प्रतिदिन कर सकते हैं। एक तो हम अपना सर्व त्याग कर सकते हैं। हमारे अंदर सब-कुछ छोड़ने का सामर्थ्य है। जब हम गाढ़ निद्रा में सो जाते हैं तो सब कुछ छोड़कर सोते हैं कि लेकर? कहना होगा कि छोड़कर। तो सुषुप्ति अवस्था में जब हम सर्व त्याग कर देते हैं तो पूर्ण विश्राम का अनुभव करते हैं। यदि एक दिन भी निद्रा न आए तो लोग बेचैन हो जाते हैं। आपके लिए सोना अनिवार्य है। और अगर सोना अनिवार्य है तो सबकुछ छोड़ना भी अनिवार्य है। क्यूंकि सब छोड़े बिना हम सो नहीं सकते। पूर्ण आराम के लिए सब छोड़कर निद्रा में जाना आवश्यक है। अभिप्राय ये है कि हममें वह सामर्थ्य है। और इससे भगवान हमारी असंगता और हमारे त्याग के सामर्थ्य को प्रकट करते हैं। परन्तु  कभी भी हमारा ध्यान इस ओर गया ही नहीं।

दूसरा सामर्थ्य जो हममें है वह नई दुनिया बनाने का। इसका अनुभव हमें स्वप्नावस्था में होता है।स्वप्न में हम एक नई दुनिया का निर्माण कर लेते हैं। ईश्वर कहता है कि देखो! मैंने अपनी ईश्वरता को पूरी तरह तुमको दे दी। जैसे मैं सृष्टि का निर्माण करता हूं। वैसे ही तुम्हारे में भी नवीन सृष्टि निर्माण की क्षमता है। जैसे मैं महाप्रलय के पश्चात् अपने स्वरूप में स्थित हो जाता हूं। वैसे ही तुम भी अनासक्त होकर सबका त्याग करके अकेले बैठ जाओ। इस प्रकार नवीन सृष्टि के निर्माण का सामर्थ्य स्वप्न से और सबके परित्याग का सामर्थ्य सुषुप्ति से सिद्ध होता है।

यह ईश्वर ने बहुत बड़ी सम्पदा प्रदान किया है। लेकिन दुनिया के लोगों की दृष्टि इस ओर जाती ही नहीं। कहेंगे कि हम सबको छोड़कर कैसे रह सकते हैं। तो उन्हें यह समझना चाहिए कि जैसे प्रति दिन सबको छोड़कर छ: घंटे सो जाते हैं वैसे ही। फिर प्रश्न होता है कि हम सृष्टि कैसे बना सकते हैं। तो जैसे स्वप्न में। इसलिए निराश होने की आवश्यकता नहीं है।

कभी कभी व्यक्ति अपनी जन्मभूमि का त्याग करके कोलकाता, मुम्बई आदि महानगरों में जाकर अपने एक नवीन समाज का निर्माण कर लेता है। उपासना में यही दो बातें महत्वपूर्ण हैं। एक सर्वत्याग पूर्वक भगवत्शरणागति और दूसरा भगवान से अपने सम्बंध को पहचान लेना। हमें ऐसा लगता है कि ये हमारे लिए असंभव है किन्तु ईश्वर का अंश होने के कारण ये गुण हमें सहज ही प्राप्त हैं। और यह हमारे ईश्वरांश होने को प्रमाणित भी करता है।

ईश्वर अंश जीव अविनाशी