कार्तिक का महीना सबसे पवित्र माना जाता है। कार्तिक चतुर्दशी के दिन भगवान शिव श्री हरि विष्णु संसार की सत्ता सौंपते हैं। धार्मिक मान्यता है कि आषाढ़ की देवशयनी ग्यारस से कार्तिक की देव उठनी ग्यारस तक भगवान विष्णु पाताल के राजा बलि के यहां निंद्रा में रहते हैं। इस अवधि में संसार के संचालन का कार्य भोलेनाथ शिव के जिम्मे रहता है। वहीं कार्तिक एकादशी पर देव प्रबोधन होता है, इसके पश्चात चतुर्दशी के दिन भगवान शिव संसार के संचालन का कार्यभार भगवान विष्णु को लौटाते हैं। इस दिन दोनों देवता भेंट करते हैं। मान्यता है कि शिवजी पर तुलसी दल और विष्णु जी पर बेलपत्र गिर जाता है। लोक मान्यता के अनुसार साल में एक बार बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव पर तुलसी दल और भगवान विष्णु पर बेल पत्र चढ़ाया जाता है।

 भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान शिव की विधि विधान से पूजा-अर्चना करने से उनकी कृपा  और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु का पूजन और सवारी निकाली जाती है।   कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी याने बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन एक हजार कमल के फूलों से करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन श्राद्ध और तर्पण का भी विशेष महत्व है।

महाभारत के युद्ध में मारे गए लोगों का श्राद्धकर्म भगवान कृष्ण ने इसी दिन करवाया था। बैकुंठ चतुर्दशी का यह व्रत शैव और वैष्णवों के पारस्परिक एकता का प्रतीक माना जाता है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन श्री हरि विष्णु को उनकी सत्ता का भार वापस सौंपकर भगवान शिव कैलाश पर्वत में तपस्या रत हो जाते हैं। इस धार्मिक परंपरा को हरिहर मिलन कहा जाता हैं। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी भगवान विष्णु और शिवजी के ऐक्य का प्रतीक है। इस दिन 14 दीपक जलाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।