- span style= color: #ff0000 font-size: large जाहिद खान- /span p style= text-align: justify strong प्र /strong कृति से छेड़छाड़ समूची मानवजाति के लिए खतरनाक हो सकती है यह बात कई अध्ययनों से सामने निकलकर आ चुकी है। पर्यावरण परिवर्तन के अंतरसरकारी पैनल (आइपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट ने एक बार फिर हमें चेतावनी दी है कि यदि हमने ग्रीन हाऊस गैसों के बढ़ते प्रदूषण को इसी तरह से नजरअंदाज किया तो इसके गंभीर नतीजे पूरी दुनिया को भुगतने होंगे। रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग यानी बढ़ते तापमान से लोगों के स्वास्थ रहन-सहन खान-पान और सुरक्षा को काफी खतरा बढ़ गया है। इसके असर से कोई भी नहीं बचा है। आने वाले सालों में ग्लोबल वार्मिंग के दुश्प्रभावों से पृथ्वी पर कोई अछूता नहीं रहेगा। सभी को इसका खामियाजा भुगतना होगा। खास तौर पर एशिया के दो बड़े देश भारत और चीन को सदी के मध्य तक पीने के पानी की कमी व सूखे का सामना करना होगा। दोनों देशों में गेंहू और चावल की पैदावार पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। /p p style= text-align: justify दुनिया भर के 309 वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों के आधार पर सत्तर देशों के बारे में ये रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट जलवायु परिवर्तनों से होने वाले प्रभाव के पक्ष में जरूरत से ज्यादा सबूत मुहैया कराती है। पर्यावरण परिवर्तन 2014 : प्रभाव तदात्म्य और दुष्प्रभाव शीर्षक से जारी 2610 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हवा लगातार गर्म होती जा रही है। इससे मानसून के पैटर्न में भी बदलाव आया है। दुनिया भर में कहीं भी चले जाएं सभी जगह इसके गंभीर दीर्घ और अपरिवर्तनीय असर देखे जा रहे हैं। यूरोप के अंदर हाल ही में आई गर्मी की लहर रूस जैसे बर्फीले देश में लू लगने से सैंकड़ो लोगों की मौत अमेरिका में जंगलों की आग आस्टे्रलिया में सूखा मोजांबिक पाकिस्तान व थाईलैंड की भीषण बाढ़ इस बात के सबूत हैं कि खतरा कहां तक आ पहुंचा है। जलवायु में थोड़ा सा भी और परिवर्तन इस तरह के खतरों को और भी कई गुना बढ़ा देगा। /p p style= text-align: justify रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्बन डाईआक्साइड के अत्यधिक उत्सर्जन से ओजोन (ओ3) की परत पर बहुत ही बुरा असर पड़ने वाला है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में औद्योगिकीकरण के युग से पहले से लेकर अब तक ओ3 परत में लगातार नुकसान हुआ है। ग्रीन हाउस गैसों के लगातार उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिग बढ़ रही है जिसका सबसे ज्यादा असर खाद्य सुरक्षा प्रणाली पर पड़ रहा है। इससे प्रमुख फसलों के वैश्विक उत्पादन में भारी गिरावट आई है। ये नुकसान मौटे तौर पर गेहूं और सोयाबीन की फसलों में दस फीसद तक का है। मक्का की फसल में तीन फीसद और धान की फसल में पांच फीसद का नुकसान हुआ है। जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा नुकसान गरीब देषों की जनता का होगा। जबकि पर्यावरण को बिगाड़ने में उनकी कोई भूमिका नहीं। विकसित देषों की पूंजीवादी नीतियों और गला काट आपसी प्रतिस्पर्धा ने इन देशों के सामने एक नया संकट खड़ा कर दिया है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए सीधे-सीधे दुनिया के विकसित देश जिम्मेदार हैं। बावजूद इसके ये देश ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं। जब भी इस तरह की बात उठती है ये देश झूठे बहाने और वादे कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं। /p p style= text-align: justify ग्लोबल वार्मिंग का हमारे देश पर भी काफी प्रभाव पड़ेगा। खास तौर पर देश की खाद्य सुरक्षा प्रणाली को इससे सबसे ज्यादा खतरा है। अत्यधिक तापमान के कारण आने वाले समय में धन और मक्के की फसलों का झुलस कर बर्बाद हो जाने का पूरा अंदेशा है। इन दो फसलों पर ग्लोबल वार्मिग का सबसे भयानक असर होगा। बीते फरवरी मार्च के महीनों में जिस तरह से महाराष्ट्र और मधय प्रदेश के कई इलाको में बेमौसम की बरसात हुई और ओले गिरे वह किस बात का संकेत देते हैं। बदलता मौसम फसलों की ही तरह भारत के मत्स्य पालन उद्योग को भी भारी नुकसान पहुंचाएगा। मानसून के पैटर्न में बदलाव आने से गंगा नदी और उस पर निर्भर मत्सय पालन के उत्पादन और वितरण पर भी बुरा असर पड़ा है। भारत में पर्यावरण के कई कारक प्रभाव डाल रहे हैं जिसमें वायु का गर्म होना क्षेत्रीय मानसून में बदलाव विभिन्न क्षेत्रों में तूफान का आना-बढ़ना गंगा नदी की बहुत से प्रजातियों को नष्ट कर रहा है। गंगा नदी में झींगा मछली की कमी होती जा रही है। अन्य पालतू और वन्य जीवों पर भी पर्यावरण में बदलाव का बुरा असर हो रहा है। इससे डेयरी उत्पादों में तो कमी होगी ही मांस और ऊन की उपलब्धता भी घट जाएगी। इसके अलावा तापमान बढ़ने से जानवरों का वजन कम होता जा रहा है। जिसकी वजह से दुग्ध उत्पादन में भी भारी कमी आई है। पशुओं में पहले की तुलना में बीमारियां बढ़ गई हैं। पक्षियों की कई प्रजातियां हमारे देखते ही देखते लुप्त हो गईं। /p p style= text-align: justify रिपोर्ट का यदि बारीकी से अध्ययन करें तो साल 2007 में आई इसी तरह की एक रिपोर्ट की तुलना में दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग के खतरों के साक्ष्य दोगुने हुए हैं। इन सालों में दुनिया भर का तापमान दो सेंटीग्रेड तक बढ़ा है। जो कि बहुत ज्यादा है। यदि यह तापमान थोड़ा सा भी और बढ़ा तो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा और गहरा जाएगा। गर्मी बढ़ने से साइबेरिया तिब्बती पठार और मधय एशिया के ग्लेशियर पिघलेंगे। हिमालय के ग्लेशियर पिघलने से चीन और भारत की कई नदियों में विनाशकारी बाढ़ आ जाएगी। जिससे बड़े पैमाने पर जनजीवन प्रभावित होगा। समुद्र पहले से ज्यादा अम्लीय हो जाएगा। जिससे समुद्र में रहने वाली कई प्रजातियां पूरी तरह से नष्ट हो जाएंगी। आर्कटिक हिमसागर और मूंगे की चट्टानों जैसे विशेष प्राकृतिक तंत्र इससे बच नहीं पाएंगे। दूसरी तरफ गर्मी बढ़ने से भी काफी मौतें होंगी। ठंडे देशों के लोग इस गर्मी को झेल नहीं पाएंगे। तापमान वृध्दि से विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां और जीव भी ऊपरी ध्रुवों की ओर बढ़ेंगे। /p p style= text-align: justify कुल मिलाकर यदि समय रहते विकसित देशों ने ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं लाई तो ग्लोबल वार्मिंग से होने वाला नुकसान बेकाबू हो जाएगा। इन देशों को अपने यहां ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन हर हाल में घटाना होगा। क्योंकि इन्हीं देशों ने सबसे ज्यादा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है। ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाए बिना यह खतरा किसी भी तरह टाला नहीं जा सकता। अब वक्त आ गया है कि दुनिया के सभी दे अपने यहां घर यातायात और ऊर्जा के वैकल्पिक व नए संसाधन विकसित करें ताकि पर्यावरण प्रदूषण कम से कम हो। ग्लोबल वार्मिंग के प्रति लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक और शिक्षित किया जाए जिससे वे इसके खतरों को अच्छी तरह से पहचानें। पर्यावरण प्रदूषण कम से कम होगा तो पूरी दुनिया भी सुरक्षित रहेगी। /p