रायपुर। देशभर में आज राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जा रहा है। इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य मतदाताओं को अपने वोटिंग के अधिकार को लेकर जागरूक करना है। देश में कुछ ऐसे मतदाता भी हैं जो जागरूक होने के बावजूद अपने अधिकार का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि खुद चुनाव आयोग की ढिलाई की वजह से लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
दरअसल छत्तीसगढ़ की 66 पंचायतें ऐसी हैं, जहां पंचायत चुनाव नहीं हुए, जबकि राज्य में पंचायत चुनाव हुए 1 साल से ज्यादा समय बीत गया। ऐसा इसलिए क्योंकि इन 66 पंचायतों में चुनाव के लिए जिन वर्गों को आरक्षण दिया गया है उसके एक भी उम्मीदवार नहीं हैं। इनमें ज्यादातर पंचायतों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन पंचायतों में संबंधित जाति की आबादी ही नहीं है। ऐसे में उन जातियों के उम्मीदवार कहां से मिलेंगे।
इस व्यवस्था का नतीजा यह हुआ कि 66 पंचायतों के मतदाताओं को अपने सरपंच चुनने का मौका ही नहीं मिला। इतना ही नहीं, इस तरह से किए गए आरक्षण का एक परिणाम यह भी है कि प्रदेश के 874 आरक्षित वार्डों में पंचों के लिए कोई नामांकन तक दाखिल नहीं हो पाया। ज्यादातर गांवों के परिसीमन या गांव वालों के विस्थापित होने की वजह से ऐसी नौबत आई है। कुछ पंचायतें ऐसी भी हैं, जहां ओबीसी महिलाओं के लिए पद आरक्षित थे लेकिन महिलाओं के पास प्रमाण पत्र न होने के कारण किसी का नामांकन नहीं हो पाया।
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बिना सरपंच के ही चल रहा है पंचायती सरकार का काम
राज्य में पंचायत चुनाव हुए एक साल से ज्यादा समय हो गए हैं लेकिन चुनाव आयोग ने यहां दुबारा चुनाव कराने या चुनाव संबंधी दिशानिर्देश जारी करने की जहमत नहीं उठाई है। ऐसे में इन गांवों में बिना सरपंच के ही पंचायती सरकार का काम चल रहा है। अब सवाल यह है कि क्या इन परिस्थितियों में तमाम सरकारों और संस्थाओं द्वारा मतदाता अधिकार दिवस के नाम पर बड़े-बड़े समारोहों का आयोजन कराना इन मतदाताओं के साथ बेमानी नहीं है? क्या जिन पंचायतों में वांछित आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार नहीं हैं, उनमें रहने वाले मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कैसे करेंगे?