नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों से जुड़ा पेंशन का 50 साल पुराना कानून बदल दिया है। दरअसल, देश में पेंशनर्स की हत्या के मामले बढ़ने लगे थे। घर में ही पेंशन के लिए हत्याएं कर दी जाती थी। पेंशनभोगीयों को उनके जीवन साथी या बच्चे ही मार देते थे। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए साल 1972 में भारत सरकार ने आदेश जारी कर हत्या की घटनाओं में पारिवारिक पेंशन को तब तक 'निलंबित' कर दिया था जब तक कि किसी भी तरह का कानूनी फैसला नहीं हो जाता। लेकिन केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने अब इस नियम को बदल दिया है।

केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने इस संबंध में नया आदेश जारी कर कहा है कि ऐसे मामलों में पारिवारिक पेंशन निलंबित नहीं की जाएगी बल्कि परिवार के अगले पात्र सदस्य (आरोपी के अलावा) को तत्काल दी जाएगी चाहे वह मृतक के बच्चे हों या माता-पिता हों। नए आदेश के मुताबिक, 'परिवार के किसी अन्य सदस्य (जैसे आश्रित बच्चे या माता-पिता) को पारिवारिक पेंशन नहीं देना गलत है। कानूनी कार्यवाही को अंतिम रूप देने में लंबा समय लग सकता है। लेकिन ज्यादा वक्त लगने के कारण मृतक के पात्र बच्चों/ माता-पिता को पारिवारिक पेंशन ना मिलने से आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

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नए आदेश में कहा गया है, 'ऐसे मामलों में जहां पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति पर सरकारी कर्मचारी की हत्या करने का आरोप लगता है तो उस परिवार की पेंशन निलंबित रहेगी। लेकिन इस संबंध में आपराधिक कार्यवाही के खत्म होने तक परिवार के अन्य पात्र सदस्य को पारिवारिक पेंशन की अनुमति दी जा सकती है। साथ ही यदि सरकारी कर्मचारी के पति या पत्नी पर आरोप लगता है और अन्य पात्र सदस्य मृतक सरकारी कर्मचारी की नाबालिग संतान है, तो ऐसे बच्चे को नियुक्त अभिभावक के माध्यम से पेशंन मिलेगा। बच्चे के माता या पिता (जिस पर आरोप लगा हो) परिवारिक पेंशन निकालने के मकसद से अभिभावक के तौर पर नियुक्त नहीं हो सकते।'

नए आदेशों में यह भी कहा गया है कि यदि आरोपी को बाद में हत्या के आरोप से बरी कर दिया जाता है तो उसे बरी करने की तारीख से पेंशन मिलने लगेगी। उसी तारीख से परिवार के अन्य सदस्य को मिल रही पारिवारिक पेंशन बंद कर दी जाएगी। इसके पहले नियम था कि अगर आरोपी को बरी कर दिया गया तो बकाया राशि के साथ पारिवारिक पेंशन फिर से शुरू कर दी जाती थी। यदि आरोपी को दोषी ठहराया जाता था तो बकाया राशि के साथ परिवार के अगले पात्र सदस्य की पेंशन फिर से शुरू कर दी जाती थी। धीमी गति से चलने वाली भारतीय न्यायिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए सरकार ने नियमों में बदलाव कर दिया है।