नई दिल्ली। अगर हमारी सालाना आमदनी सौ रुपये हो और उस पर कर्ज़ का बोझ बढ़कर हो जाए 90 रुपये, तो कैसे चलेगा काम? है न चिंता बढ़ाने वाली बात। कुछ ऐसी ही हालत हमारे देश की अर्थव्यवस्था की होती जा रही है। ये कहना है IMF यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट का। IMF के आंकड़े बता रहे हैं कि भारत पर कर्ज़ का बोझ हमारी GDP के 89.3 फीसदी तक हो सकता है।

फिक्र की बात यह है कि कर्ज़ के मामले में हमारी हालत इतनी बुरी होने जा रही है कि पड़ोसी देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल भी हमसे बेहतर हालत में होंगे। दुनिया के पैमाने पर बात करें तो भारत उभरती हुई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में ब्राजील और अर्जेंटीना के बाद सबसे अधिक कर्जदार देश बनने जा रहा है। IMF के आंकड़ों के अनुसार इस साल पाकिस्तान का जीडीपी-कर्ज अनुपात 87.2 प्रतिशत रहेगा। जबकि बांग्लादेश और नेपाल के लिए यह अनुपात महज 40 फीसदी रहने का अनुमान है।

IMF के आंकड़े बताते हैं कि कर्ज़ के मामले में हमारी इतनी बुरी हालत 2015 तक नहीं थी। 2015 में देश में जीडीपी और कर्ज का अनुपात 68.8 फीसदी था, जो 2019 में बढ़कर 72.3 फीसदी हो चुका था। अब से पहले इस मामले में देश की सबसे बुरी हालत 2003 में हुई थी, जब जीडीपी और कर्ज का अनुपात 84.2 फीसदी था। आपको याद दिला दें कि 2003 में भी देश में बीजेपी की ही सरकार थी। 

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत के कर्ज में हुई यह तेज बढ़ोतरी GDP में भयानक गिरावट और अंधाधुंध कर्ज लिए जाने के कारण हुई है। सरकार की रेवेन्यू यानी राजस्व में आई गिरावट भी इसकी बड़ी वजह बताई जा रही है। IMF के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में केंद्र और राज्य सरकारों के कुल राजस्व संग्रह में रुपये में गिनने पर 12.3 फीसदी और डॉलर में गिनने पर 15.4 फीसदी की भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। 

जबकि इसी दौरान देश की GDP में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान भी जाहिर किया जा रहा है। अगर GDP में इस अनुमान से ज्यादा गिरावट आई तो देश की आमदनी और कर्ज का रेशियो और बिगड़ने की आशंका से भी इनकार नहीं किया  सकता। विशेषज्ञों का कहना है सार्वजनिक कर्ज में इतनी भयानक बढ़ोतरी का देश के आर्थिक विकास पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। दूसरी तरफ राजकोषीय घाटे का बेलगाम होना भी आर्थिक जानकारों के लिए चिंता की बड़ी वजह है। देश के इस आर्थिक संकट के लिए मोदी सरकार की कमज़ोर आर्थिक नीतियां तो जिम्मेदार हैं ही, साथ ही इसमें कोरोना से निपटने के नाम पर महज 4 घंटे के नोटिस पर किए गए पूर्ण लॉकडाउन के नासमझी भरे एलान का भी बड़ा हाथ है।