नई दिल्ली। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक टलने की वजह सामने आई है। वजह यह है कि सरकार तय समय पर रिजर्व बैंक के पैनल में सदस्यों की नियुक्ति नहीं कर पाई। रिजर्व बैंक के गवर्नर की अगुआई में 29 सितंबर से शुरू होने वाली यह बैठक अगले तीन दिन तक चलनी थी। इस बैठक में ब्याज दरों में बदलाव समेत मौद्रिक नीति से जुड़े तमाम अहम मुद्दो पर चर्चा होनी थी। लेकिन अब तक साफ नहीं है कि यह बैठक कब हो पाएगी।
रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति समिति में फिलहाल तीन सदस्य हैं। नियमों के मुताबिक इसमें कम से कम चार सदस्य होने चाहिए। 6 सदस्यों वाली इस समिति के तीन सदस्यों का कार्यकाल पिछले महीने खत्म हो गया था। जिसके बाद सरकार ने कोई नई नियुक्ति नहीं की।
देश के पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री ने इस लापरवाही को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि मौद्रिक नीति समिति 30 सितंबर को निष्क्रिय हो जाएगी, इससे पता चलता है कि सरकार और प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था की कितनी चिंता करते हैं। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति की घोषणा करने के लिए एमपीसी की बैठक आयोजित नहीं कर सकता है, उसे बैठक को स्थगित करने के लिए मजबूर किया गया है।
चिदंबरम ने आगे कहा कि यह अभूतपूर्व है। उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार को एहसास है कि हर दो महीने में मौद्रिक नीति में सुधार आर्थिक प्रबंधन के लिए बिल्कुल जरूरी है? उन्होंने कहा कि बाजार, बैंकर, विश्लेषक, उधारकर्ता और प्रत्येक हितधारक सरकार की इस घोर लापरवाही से हैरान हैं।
दरअसल, आर्थिक लिहाज से इस नाजुक समय में रिजर्व बैंक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। या यूं कहें कि केंद्र सरकार के पास सीमित वित्तीय संसाधन मौजूद होने की वजह से आरबीआई ही सारा भार अपने ऊपर ले रहा है। सरकार की इस लापरवाही ने ऐसे कठिन समय में बाजार में और भ्रम पैदा कर दिया है।
विश्लेषकों का मानना है कि आरबीआई की मौद्रिक नीति ही लकवाग्रस्त अर्थव्यवस्था को कुछ राहत दे रही थी। सरकार के पास सदस्यों की नियुक्ति के लिए पर्याप्त समय था लेकिन उसने नियुक्ति नहीं की। एक तरीके की अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है जो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगी।
अनुमान लगाया जा रहा था कि आरबीआई इस बार भी ब्याज दरों को जस का तस 4 प्रतिशत पर ही रखने वाला था। रिजर्व बैंक इस साल अब तक ब्याज दरों में 115 बेसिस प्वाइंट यानी करीब 1.15 फीसदी की कटौती कर चुका है और ऐतिहासिक गिरावट से जूझ रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अरबों डॉलर की लिक्विडिटी सिस्टम में डाल चुका है।
दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने जीडीपी के 10 प्रतिशत के बराबर आर्थिक पैकेज घोषित करने का दावा तो किया है, लेकिन हकीकत यह है कि इसमें सरकारी खजाने से होने वाला अतिरिक्त खर्च सिर्फ एक प्रतिशत ही है। आरबीआई गवर्नर से लेकर विभिन्न रेटिंग एजेंसियां सरकार से खर्च बढ़ाने की बात करती रही हैं। वित्त मंत्रालय भी कहता रहा है कि ज़रूरत पड़ने पर और खर्च किया जाएगा, नया प्रोत्साहन पैकेज दिया जाएगा। लेकिन अब तक हुआ कुछ नहीं है।
जहां तक नए प्रोत्साहन के लिए सही समय की बात है, तो इससे ज्यादा आपत्ति का समय क्या हो सकता है। पिछली तिमाही में देश की जीडीपी विकास दर में 23.9 प्रतिशत की भयानक गिरावट दर्ज की जा चुकी है। देश में इतनी बड़ी आर्थिक गिरावट पहले कभी नहीं देखी गयी। तमाम जी 20 देशों के मुकाबले भी यह सबसे बड़ी गिरावट है। ऐसे में रिजर्व बैंक की नीति निर्धारण करने वाली समिति का कामकाज ठप होना देश के लिए वाकई चिंता की बात है।