नई दिल्ली। डॉलर के मुकाबले रुपया इतिहास के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। सोमवार 1 दिसंबर को कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 34 पैसे गिरकर 89.79 तक लुढ़क गया। यह 2 हफ्ते पहले के ऑल-टाइम लो (89.66) को पार कर गया। दिन खत्म होने तक रुपया 89.53 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
इंटरबैंक फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में सोमवार को रुपया 89.45 पर खुला। इसके बाद कारोबार के दौरान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.79 के रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिर गया। यह गिरावट पिछले कारोबारी दिन के मुकाबले 34 पैसे कम है। शुक्रवार 28 नवंबर को डॉलर के मुकाबले रुपया नौ पैसे गिरकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.45 पर बंद हुआ था। वहीं 21 नवंबर को, रुपया 98 पैसे गिरकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.66 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ था।
घरेलू शेयर बाजारों में गिरावट और लगातार विदेशी फंड्स की निकासी ने रुपए पर दबाव बनाया है। रुपया 2025 में अब तक 4.77 फीसदी कमजोर हो चुका है। 1 जनवरी को रुपया डॉलर के मुकाबले 85.70 के स्तर पर था, जो अब 89.79 के लेवल पर पहुंच गया है।
रुपये पर दबाव के कई कारण बताए जा रहे हैं। डॉलर में मजबूती और इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी की वजह से रुपये पर दबाव पड़ा है। भारत बड़ी मात्रा में कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान डॉलर में होता है। इसलिए ये डॉलर खरीदने के लिए भारत को पहले के मुकाबले अब ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ेंगे। इसलिए रुपये पर दबाव बढ़ गया है। जानकारों का कहना है कि रुपये में जारी गिरावट का एक और बड़ा कारण ये है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं।
रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इम्पोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी, तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाता था। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 89.79 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे छात्रों के लिए फीस से लेकर रहना-खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी।