मध्य प्रदेश में मंडियों के निजीकरण का असर अब कृषि उपज मंडी समितियों पर दिखने लगा है। कृषि उपज मंडी समितियों द्वारा मिट्टी परीक्षण लैब में संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों को वेतन दिए जाने पर रोक लगाने का आदेश दिया गया है। बताया जा रहा है कि यह तो शुरुआत है। इसके बाद मंडियों के नियमित कर्मचारियों के वेतन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

कृषि विपणन बोर्ड के प्रबंध संचालक सह आयुक्त संदीप यादव ने बोर्ड के समस्त संयुक्त और उप संचालकों को उनके संभाग के अन्तर्गत आने वाले तमाम मिट्टी परीक्षण लैब में संविदा पर कार्यरत सभी कर्मचारियों के वेतन रोकने के आदेश दिए हैं। आदेश में कहा गया है कि मिट्टी परीक्षण लैब अब राज्य सरकार के अन्तर्गत आ गया है। मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला अब राज्य सरकार की परिसंपत्ति हो गई है। ऐसे में कृषि उपज मंडी समितियों द्वारा मिट्टी परीक्षण लैब में संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों को दिए जाने वाले मानदेय पर जुलाई 2020 से रोक लगा दी जाए।

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आदेश में कहा गया है कि कृषि उपज मंडी समितियों से संबंधित कार्य न होने पर भी समितियों को संविदा पर कार्यरत कमर्चारियों को वेतन भुगतान करना पड़ रहा है। जिस वजह से समितियों को आर्थिक बोझ का सामना करना पड़ रहा है।

सी और डी ग्रेड के कर्मचारियों के वेतन पर संकट 

जानकारों के अनुसार कृषि मंडियों के निजीकरण के साथ ही सरकारी कृषि उपज मंडियों में आर्थिक संकट दस्‍तक दे चुका है। अपनी जिम्‍मेदारी कम करने के लिए कृषि उपज मंडी समितियों के फैसले से लगभग 150-200 संविदा कर्मचारियों की रोज़ी रोटी पर असर पड़ने की संभावना है। यही नहीं, आशंका तो यह भी है कि अगले महीने से कृषि उपज मंडी समितियां सी और डी ग्रेड के कर्मचारियों को भी वेतन देने की स्थिति में भी नहीं होंगी। इस तरह किसानों की पैदावार को अच्‍छा मार्केट उपलब्‍ध करवाने के नाम पर, स्‍थापित सरकारी तंत्र यानी मंडी व्‍यवस्‍था को भंग करने का फैसला नकारात्मक असर दिखाना शुरू कर दिया है। वेतन नहीं मिलने से लोगों में भारी रोष है। और लोग मंडी के निजीकरण के फैसले का विरोध करने की बात करने लगे हैं।