MP में अध्यादेश से निजी कृषि मंडियां खोलना मनमानी : दिग्विजय सिंह

बड़ी कंपनियों के लिए निजी कृषि उपज मंडियां खोलने का निर्णय किसानों, व्यापारियों और हम्मालों की खुली अदालत में जाकर लें।

Publish: Jun 07, 2020, 09:34 AM IST

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह ने शिवराज सरकार द्वारा पारित निजी कृषि उपज मंडी खोलने के अध्यादेश को मनमाना करार देते हुए सरकार की मंशा को संदिग्ध बताया है। उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज को पत्र लिखकर विरोध जताते हुए इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है। दिग्विजय सिंह ने पत्र में लिखा है कि प्रदेश में विगत एक दशक में कर्ज के कारण तकरीबन 20 हजार किसानों ने आत्महत्या की हैं, जबकि सरकार पिछले 15 सालों से उनकी आय दुगनी करने की झूठे सपने दिखा रही है। ऐसे में लॉकडाउन के बीच अचानक अध्यादेश लाकर मंडी अधिनियम में संशोधन कर 100 करोड़ के व्यापारियों के लिए निजी मंडी खोलने का निर्णय लेना अनेक प्रश्न खड़े कर रहा है।

शिवराज सिंह चौहान सरकार ने सोमवार को एक अध्यादेश जारी कर प्रदेश में करोड़ों रुपए की कृषि उपज खरीदी करने वाली कंपनियों के लिए निजी कृषि उपज मंडी खोलने की इजाजत देने का फैसला किया है। वहीं मंगलवार को सरकार ने इसके नियमों के प्रारूप का समीक्षा करने के लिए पांच नौकरशाहों को जिम्मा दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सीएम शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर इस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उन्होंने लिखा है कि, 'आपके द्वारा आनन-फानन में लिए गए इस फैसले से प्रदेश के लाखों किसानों, व्यापारियों, हम्मालों, तुलावटियों व कर्मचारियों में सरकार के प्रति आक्रोश व्याप्त है। वे अपने वर्षों से चले आ रहे कृषि कार्य, व्यापार व व्यवसाय के ठप होने को लेकर चिंतित हैं। प्रदेश के लाखों गरीब किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाने के लिए कांग्रेस सरकार ने 1972 में मंडी अधिनियम बनाकर किसानों को अपने उपज के विक्रय के लिए कृषि उपज मंडी के रूप में बाजार उपलब्ध कराया था जिससे वे दलालों के पंजों से मुक्त हुए थे।'

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने इस फैसले से सांसद, विधायक, स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधि, पूर्व व मौजूदा मंडी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और संचालक आदि जनप्रतिनिधियों से पहले सलाह लेने की बात कही है। उन्होंने लिखा है कि, 'सभी प्रभावितों से चर्चा के बाद विधानसभा सत्र में पक्ष-विपक्ष के सदस्य इस पर निर्णय लेंगे तो यह लोकतांत्रिक तरीका होगा अन्यथा सरकार का यह फैसला अनेक प्रश्न खड़ा कर रहा है।

उन्होंने नौकरशाहों द्वारा समीक्षा करवाने पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि, 'निजी कृषि मंडी स्थापित करने का अलोकतांत्रिक कदम उठाने के बाद सरकार ने पांच नौकरशाहों को नियमों के प्रारूप की समीक्षा करने को कहा है। यह समझ से परे है कि क्या वे कृषि विशेषज्ञ या किसान हैं? इस मामले में शासन की मंशा संदिग्ध प्रतीत होती है।' उन्होंने सीएम से आग्रह किया है कि प्रदेश सरकार 100 करोड़ का टर्नओवर करने वाली कंपनियों के लिए निजी कृषि उपज मंडियां खोलने पर किसानों, व्यापारियों और हम्मालों की खुली अदालत में जाकर किसान हितैषी निर्णय लें।