कोलकाता। बंगाली मिठाइयां दुनिया भर में पसंद की जाती हैं, यहां के रसगुल्ले को 2017 में GI टैग मिला था। चार साल के प्रयास के बाद अब दो और बंगाली मिठाइयों को GI स्टेटस देने की तैयारी है। ये मिठाइयां यहां त्यौहारी सीजन में खूब पसंद की जाती हैं। सरभजा और सरपुरिया के शौकीन इन्हें खरीदने के लिए दूर –दूर से आते हैं, ये दोनों मिठाइयां हर दुकान में नहीं मिलती है। कुछ खास मिठाई के कारीगर ही इन्हें त्यौहारों के सीजन में बनाते हैं।

वैसे तो सरभजा और सरपुरिया मिठाई में ज्यादा अंतर नहीं है, एक को भूनकर तैयार किया जाता है, तो दूसरे को डीप फ्राय किया जाता है। दोनों ही नर्म और स्वादिष्ट होती हैं। और मलाई के साथ परोसी जाती हैं। इन्हें बंगाल में पूजा के मौके पर परोसा जाता है। खास तौर पर दुर्गा पूजा, जन्माष्टमी, जगदात्री पूजा, काली पूजा, लोकनाथ बाबा पूजा के अवसर पर मिलती हैं। सरभजा काफी नर्म मिठाई होती है, इसे दूध को औटाकर मलाई की पर्तों से तैयार किया जाता है। फिर इसे घी में तला जाता है और फिर चासनी में डुबोकर बारीक कटे बादाम और पिस्ता में से सजाया जाता है।

सरभजा और सरपुरिया पसंद तो पूरे प्रदेश में की जाती हैं, लेकिन इन्हें कृष्णनगर और नादिया जिलों में ज्यादा बनाया और उपयोग किया जाता है। दरअसल बंगाली रसगुल्ले को 2017 में GI टैग मिल चुका है। वहीं ओडिशा ने भी रसगुल्ले अपना बताया था, लंबी कानूनी लड़ाई के बाद ओडिशा रसगुल्ला के नाम पर GI टैग दिया गया था, जो की 2028 तक मान्य है। सरभजा और सरपुरिया के शौकीन अपनी पसंदीदा मिठाई को GI टैग मिलने की खबर से खुश हो रहे हैं।

बंगाल की संस्कृति और इतिहास में इन दोनों मिठाइयों को काफी महत्व दिया जाता है। इन्हें GI टैग दिलाने के लिए बंगाल सरकार ने चार साल पहले अप्लाय किया था। अब इन्हें GI टैग मिलने का रास्ता साफ हो गया है। कृष्णनगर और नादिया जिले में दोनों ज्यादा बनाई और खाई जाती हैं। अब यहां को बाशिंदे शहरों की इस उपलब्धि से फूले नहीं समा रहे हैं।  

दरअसल भौगोलिक संकेत याने Geographical Indication Tag वहां किसी भी चीज को उस खास जगह की पहचान प्रदान करता है। GI टैग के माध्यम से किसी भी प्रोडक्ट को उसकी भौगोलिक पहचान मिलती है। संसद में इसे रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट-1999 के तहत जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स लागू किया गया था। जो कि राज्य के किसी खास भौगोलिक परिस्थितियों में पाई जाने वाली चीजों को विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार देता है। जिस भी वस्तु को IG टैग मिलता है उसके बाद वहां के अलावा किसी उन्य स्थान पर उसका उत्पादन नहीं किया जा सकता है। मध्यप्रदेश को मुर्गे की खास प्रजाति कड़कनाथ के लिए GI टैग मिल चुका है।