नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर सियासत गर्म है। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर सत्ताधारी दल से मिलीभगत के आरोप लगाए हैं। इसी बीच अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इसके विरुद्ध सर्वोच्च अदालत में याचिका दाखिल कर चुनाव आयोग पर मनमानी करने के आरोप लगाए हैं।

ADR ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में दखल देने की मांग की है। ADR ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा है कि अगर 24.06.2025 का SIR आदेश रद्द नहीं किया गया तो मनमाने ढंग से और उचित प्रक्रिया के बिना लाखों मतदाताओं को अपने प्रतिनिधियों को चुनने से वंचित किया जा सकता है। जिससे स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र बाधित हो सकता है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं। 

ADR के अनुसार SIR आदेश लोगों के समानता और जीने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। साथ ही ये जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 के प्रावधानों खिलाफ है। लिहाजा इस आदेश को निरस्त किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता को आशंका है कि 3 करोड़ से अधिक मतदाता, विशेष रूप से एससी, एसटी और प्रवासी श्रमिकों जैसे हाशिए के समूहों से, एसआईआर आदेश में निर्धारित सख्त आवश्यकताओं के कारण अपने वोट देने के अधिकार से वंचित रह सकते हैं।

दरअसल, 24 जून को चुनाव आयोग ने बिहार में एसआईआर करने के निर्देश जारी किए थे। इसका मकसद अपात्र नामों को हटाना और यह सुनिश्चित करना था कि मतदाता सूची में केवल पात्र नागरिक ही शामिल हों। बिहार में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं, ऐसे में विपक्ष को आशंका है कि उनके वोटर्स को लक्षित कर नाम काटे जाएंगे।