HIV वायरस की वजह से AIDS या एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम होता है। इस वायरस को ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस कहा जाता है। इसके संक्रमण से इंसान का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, जो जानलेवा साबित हो सकता है। एड्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व एड्स दिवस का आयोजन हर साल 1 दिसंबर को किया जाता है।

एड्स असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित सुई, संक्रमित खून और संक्रमित मां से उसके बच्चे में फैलता है। इस साल विश्व एड्स दिवस 2020 की थीम एंडिंग द एचआईवी एड्स, महामारी लचीलापन और प्रभाव है। आपको बता दें कि साल 2008 के बाद से विश्व एड्स अभियान की ग्लोबल स्टीयरिंग कमेटी थीम का चयन करती आ रही है।

दुनिया को इस भयानक बीमारी के प्रति जागरुक करने का ख्याल 1987 में अगस्त के महीने में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न को आय़ा था। थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न विश्व स्वास्थ्य संगठन जिनेवा, स्विट्जरलैंड के एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक सूचना अधिकारी थे। दोनों ने एड्स दिवस का अपना विचार एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के निदेशक डॉक्टर जॉनाथन मन्न को बताया। उसके बाद से 1988 में 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रुप में मनाना शुरु किया गया। आपको बता दें कि अफ्रीका के कॉन्गो में 1959 में एड्स का पहला मरीज मिला था। जबकि भारत में 1986 में एड्स का पहला मरीज सामने आया था।

किसी एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के मुख्य लक्षण थकान, सिरदर्द, बुखार और गर्दन और कमर में दर्द और लिम्फ नोड्स में सूजन है। अब एड्स का कारगर इलाज किया जा सकता है, एड्स होने पर एंटीरेट्रोवायरल दवाओं की मदद से लंबा जीवन जी सकते हैं। पहले कुछ सालों में इंसान की मौत एड्स से हो जाती थी। दुनिया भर में लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरुक करने के उद्देश्य से विश्व एड्स दिवस मनाने की शुरुआत हुई।

UNICEF की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में 37.9 मिलियन लोग HIV  संक्रमित हो चुके हैं। विश्व में 980 बच्चे इस वायरस की चपेट में आते हैं, आंकड़ों की मानें तो उनमें से 320 बच्चों की मौत हो जाती है। भारत में एड्स रोगियों की संख्या लगभग 2.1 मिलियन है।