अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव हारने के बावजूद अब तक पराजय स्वीकार नहीं की है। लेकिन सोमवार के बाद उनके लिए ऐसा करना और भी मुश्किल हो जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि सोमवार को अमेरिका में इलेक्टोरल कॉलेज की वोटिंग होनी है, जिसमें चुने हुए इलेक्टर्स अमेरिका के नए राष्ट्रपति के तौर पर जो बाइडेन का चुनाव करेंगे। इसके साथ ही निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन की जीत और डोनाल्ड ट्रंप की हार पर औपचारिक तौर पर मुहर लग जाएगी। हालांकि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के परिणामों का अंतिम रूप से औपचारिक एलान 6 जनवरी को होगा। 

भले ही राष्ट्रपति चुनावों में बाइडेन ने ट्रंप को मात दे दी हो लेकिन अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया थोड़ी जटिल है। दरअसल राष्ट्रपति की जीत या हार पर अंतिम मुहर इलेक्टोरल कॉलेज ही लगाता है। इनमें ऐसे प्रतिनिधि होते हैं जो चुनाव जीत कर आते हैं। और अंत में इन्हीं प्रतिनिधियों द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है। 

अगर अमेरिका में हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ से समझने का प्रयास करें तो ट्रम्प रिपब्लिकन कैंडिडेट थे। बाइडेन डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार थे। वोटर ने जब बाइडेन को वोट किया तो उनके नाम के आगे ब्रेकेट में एक नाम और लिखा था। ट्रम्प के मामले में भी यही था। दरअसल, मतदाता ने ब्रैकेट में लिखे नाम वाले व्यक्ति को अपना इलेक्टर चुना।

यही इलेक्टर 14 दिसंबर को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग करेंगे। और आसान तरीके से समझें तो वोटर ने ट्रम्प या बाइडेन को वोट नहीं दिया, बल्कि अपना प्रतिनिधि चुना और उसे ही वोट दिया। अब यह प्रतिनिधि यानी इलेक्टर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनेगा। अमेरिका में आम मतदाता अपने इलेक्टर्स को चुनते हैं और इलेक्टर्स के समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है। इलेक्टोरल कॉलेज में कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टोरल वोट या इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत होती है।

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को भारतीय चुनाव से तुलना करके भी समझा जा सकता है। मसलन, भारत में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री सीधे तौर पर नहीं चुने जाते। लोग उनकी पार्टी के सांसद या विधायक को वोट देते हैं, जो मिलकर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का चुनाव करते हैं। कुछ वैसी ही व्यवस्था अमेरिका में भी है। फर्क सिर्फ इतना है कि अमेरिका में इलेक्टर्स की भारतीय सांसदों या विधायकों की तरह कोई स्थायी अहम भूमिका नहीं होती है। उनकी भूमिका सिर्फ राष्ट्रपति के चुनाव तक ही होती है। अमेरिका में सांसद इन इलेक्टर्स से अलग होते हैं, जो अमेरिकी संसद के दोनों सदनों - सीनेट या प्रतिनिधि सभा के सदस्य होते हैं। ये सीनेटर या प्रतिनिधि सभा के सदस्य अमेरिका में बहुत कुछ वैसी ही भूमिका निभाते हैं, जैसी हमारे यहां सांसदों की होती है।