स्कॉटहोम। हंगरी के मशहूर लेखक लास्जलो क्रास्नाहोरकाई को 2025 का साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। स्वीडिश एकेडमी ने गुरुवार को इसका ऐलान करते हुए कहा कि लास्जलो की रचनाएं दुनिया में भय और अराजकता के बीच भी कला की शक्ति को उजागर करती हैं। उनकी लेखनी गहराई, कल्पनाशीलता और मानवीय संवेदना का अद्भुत संगम मानी जाती है। लास्जलो को पुरस्कार के रूप में 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (करीब 10.3 करोड़ रुपए) की इनामी राशि, सोने का मेडल और सम्मानपत्र दिया जाएगा। पुरस्कार वितरण समारोह 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में आयोजित होगा।
लास्जलो क्रास्नाहोरकाई को हंगरी के सबसे प्रभावशाली समकालीन लेखक माना जाता है। उनकी किताबें अक्सर दर्शन और समाज के पतन जैसे जटिल विषयों को छूती हैं। उनकी 1985 में आई मशहूर किताब ‘सतांटैंगो’ को विश्व साहित्य की क्लासिक रचना कहा जाता है। ‘सतांटैंगो’ एक छोटे से गांव की कहानी है, जहां गरीबी, धोखा और उम्मीद के टूटने के बीच इंसानियत की झलक देखने को मिलती है। इस किताब पर 1994 में 7 घंटे लंबी फिल्म भी बनी थी, जिसे आज भी सर्वश्रेष्ठ आर्टहाउस फिल्मों में गिना जाता है। इसके अलावा उनकी किताब ‘द मेलांकली ऑफ रेसिस्टेंस’ पर भी फिल्म बनाई जा चुकी है।
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लास्जलो का जन्म 5 जनवरी 1954 को हंगरी के ग्युला शहर में हुआ था। वे एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं। उनके पिता जॉर्जी क्रास्नाहोरकाई वकील थे। 11 साल की उम्र में उन्हें अपने यहूदी होने का पता चला, जिसे उनसे लंबे समय तक छिपाए रखा गया था। उन्होंने दो शादियां की थी पहली 1990 में अनिको पेलीहे से और दूसरी 1997 में डोरा कोपचान्यी से, जो चीन अध्ययन विशेषज्ञ और ग्राफिक डिजाइनर हैं। उनकी दूसरी शादी भी लंबे समय तक नहीं टिक पाई। लास्जलो की तीन बेटियां हैं।
फिलहाल वे हंगरी के सेंटलास्लो पहाड़ियों में एकांत जीवन जी रहे हैं। इससे पहले वे लंबे समय तक बर्लिन में रहे थे। वहां वे फ्री यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन में गेस्ट प्रोफेसर भी रहे थे। वे जर्मनी, चीन, मंगोलिया, जापान, अमेरिका, स्पेन और ग्रीस में समय बिता चुके हैं। लास्जलो को 2015 में मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज और 2019 में नेशनल बुक अवॉर्ड फॉर ट्रांसलेटेड लिटरेचर से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनकी लेखनी की खासियत यह है कि वे आधुनिक सभ्यता की उलझनों को गहराई से समझते हैं और उन्हें अपने शब्दों की जाल में पिरो देते हैं।