SCES- Standing Commitee on economic statistics के एकमात्र सदस्य और पूर्व statistician प्रणब सेन का दावा है कि अगर सरकार ने प्रोत्साहन नहीं दिया तो भारत में बेरोजगारी और बढ़ेगी। सेन का आंकलन है कि ये बेरोजगारी दर बढ़कर 8.5 फीसदी तक जा सकती है। प्रणब सेन को आशंका ये भी है कि अगर प्रवासी मजदूर शहर वापस नहीं लौटे तो ग्रामीण बेरोजगारी दर भी बढ़ सकती है जो अभी 2.2-2.3 फीसदी के करीब है।

प्रणब सेन कमेटी के सर्वे में ये बात कही गई थी कि 2017-18 के मुकाबले 2018-19 में बेरोजगारी दर में कुछ सुधार हुआ था। जो बेरोजगारी दर 40 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी वो साल 2018-19 में 5.8 percent हो गई। लेकिन covid के इस दौर में हुए lockdown ने देश में बेरोजगारी बढ़ाने का काम किया है। सेन का ये भी कहना है कि सरकार के 20 लाख करोड़ के पैकेज से बेरोजगारी रोकने में फायदा नहीं मिलेगा। सरकार को अगर बेरोजगारी को कम करना है तो एक और पैकेज देना चाहिए। प्रणब सेन के मुताबिक 2020-21 में देश में बेरोजगारी दर 8- 8.5 फीसदी तक पहुंच सकती है।

मई महीने में बेरोजगारी दर का आंकड़ा बेहद तेज़ी से बढ़ा

इससे पहले एक स्वतंत्र थिंक टैंक cenntre for monitoring indian economy ने दावा किया था कि इस साल मई के महीने में बेरोजगारी दर 23.48 फीसदी बढ़ी है जो कि पिछले साल  2019 जून में 7.87 फीसदी के करीब थी।
 

शहर की तुलना में ग्रामीण इलाकों में बेरोज़गारी कम, लेकिन अब स्थिति बदल सकती है
सांख्यिवीविद प्रणब सेन ने कहा है कि इस समय शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में बेरोज़गारी कम है। ग्रामीण इलाकों में बेरोज़गारी दर कम होने की वजह है कृषि सेक्टर। ग्रामीण इलाकों में कृषि सेक्टर का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा है। ग्रामीण इलाकों में बेरोज़गारी दर 2 से 2.3 फीसदी के बीच है। तो वहीं शहरी इलाकों में यह 8 से 9 फीसदी के बीच है।

हालांकि कृषि सेक्टर में अच्छा प्रदर्शन होने से ग्रामीण इलाकों में बेरोज़गारी कम ज़रूर है लेकिन हाल ही में लॉकडाउन के दौरान अपने गांव लौट रहे प्रवासी मज़दूरों की वजह से ग्रामीण इलाकों में बेरोज़गारी बढ़ सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह रिवर्स माइग्रेशन को बताया जा रहा है। ऐसे में प्रणब सेन ने कहा है कि बेरोज़गारी की स्थिति में सुधार करने के लिए सरकार को अपने पैकेज से अभी और राहत देने की गुंजाइश है। अन्यथा बेरोज़गारी रोके नहीं रुकेगी। सरकार की ओर से अगर आर्थिक पैकेज में बढ़ोतरी नहीं की गई, तो आगे बेरोज़गारी दर और बढ़ सकती है।