भोपाल। मार्क्‍सवादी नेता और लोकजतन के संपादक बादल सरोज ने  लॉकडाउन के दौरान गरीबों को होने वाली परेशानियों पर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है। उन्‍होंने लिखा है कि भोपाल में करीब दो लाख  लोग भूख की यातना से गुजर रहे हैं। यह बहुत बड़ी संख्या है मान्यवर। बहुत बड़ी। प्रशासन पूरी तरह असफल हो गया है।   न जाने क्यों जो कर सकता है वह भी नहीं कर पा रहा पा रहा। इतना ठप्प और किंकर्तव्यविमूढ़ और नेतृत्वहीन प्रशानिक तंत्र हमारे देखने में नहीं आया। ऐसी स्थिति तो 1984 की 3 और 4 दिसम्बर और 1992 की 7 से 9 दिसंबर को भी नहीं थी।

सरोज ने लिखा है कि जिसे राजनीति करनी है वह यह काम थोड़े दिन बाद भी कर सकता है। सांसद महोदया, विधायकगणों के बारे में पूछताछ शांतिकाल में की जा सकती है या कभी भी नहीं की जा सकती। इस समय इससे कुछ होने जाने वाला नहीं है। इस वक़्त सवाल मनुष्यों को बचाने का है। इसके लिए उनके संयम और धीरज की सीमा के टूटने का इंतज़ार नहीं किया जाना चाहिए।

11 अप्रैल को 12 नंबर स्टॉप पर हुआ महिलाओं का प्रदर्शन शासन-प्रशासन को जगाने के लिए पर्याप्त होना चाहिए। इसे एक टर्निंग पॉइंट मानकर कुछ कीजिये मान्यवर। दुनिया की कोई भी माँ अपनी सन्तानो को भूख से बिलखता नहीं देख सकती। उसके लिए वह कुछ भी कर सकती है-कुछ भी-किसी भी हद तक जा सकती है। 

प्रशासन की मदद के लिए जनता और उसके बीच सक्रिय सामजिक संगठनों, जनसंगठनों, संस्थाओं, व्यक्तियों का सहयोग लेने से स्थिति पारदर्शी भी होगी - उसमे सुधार भी होगा। इनके चयन में अपने पराये का हिसाब रखने का यह समय नहीं है। इसे बाद में किया जा सकता है। 

बहरहाल जो ठीक समझें करें लेकिन प्लीज कुछ करें। आपका कार्यालय किसी भी दल या संगठन के पत्रों-सुझावों की प्राप्ति सूचना न देने में अपने अहम् की तुष्टि समझता है, बिलकुल मत दीजिये, कदापि मत दीजिये। बस, कुछ कीजिये। कुछ ऐसा जो वास्तविक हो। अन्यथा कोविड-19 से कितनी जानें जाएंगी यह बाद की बात है, भुखमरी उससे अधिक जानलेवा हो सकती है।