भोपाल। दिवाली के उत्सव के बीच मध्य प्रदेश में एक खतरनाक चलन बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल हुई देसी पटाखा गन अब हादसों का कारण बन चुकी है। बीते तीन दिनों में राज्यभर में 122 बच्चे इस गन की चपेट में आकर घायल हो चुके हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 36 मामले भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में दर्ज किए गए हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 19 से 21 अक्टूबर के बीच शाम 7 बजे तक गांधी मेडिकल कॉलेज में 36, विदिशा में 12, सागर और इंदौर मेडिकल कॉलेज में 3 केस दर्ज हुए। बाकी मरीज भोपाल के निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में भर्ती हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इन मामलों में ज्यादातर बच्चों की आंखों की कॉर्निया बुरी तरह जल गई है। जिससे स्थायी अंधेपन का खतरा है।
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गांधी मेडिकल कॉलेज के नेत्र वार्ड में भर्ती सात वर्षीय अलजैन मंगलवार दोपहर दर्द से रो रहा था। दिवाली की रात वह दोस्तों के साथ पटाखा गन चला रहा था। गन रुकने पर उसने जिज्ञासा में उसकी नाल में झांका और उसी क्षण तेज धमाका हुआ। इस हादसे में उसकी बायीं आंख जल गई। डॉक्टरों की टीम ने डेढ़ घंटे तक ऑपरेशन कर आंख से कार्बाइड के टुकड़े निकाले लेकिन अभी यह निश्चित नहीं कि उसकी आंख की रोशनी बचेगी या नहीं। पुराने भोपाल के प्रशांत को भी इसी गन से चोट लगी। 48 घंटे बाद भी उन्हें केवल सफेद धुंध दिखाई दे रही है। डॉक्टरों के अनुसार, उनके कॉर्निया को गंभीर क्षति पहुंची है।
बाजारों में 100 से 200 रुपए में मिलने वाली यह गन बच्चों में नया ट्रेंड बन गई है। गांधी मेडिकल कॉलेज के डॉ. एस.एस. कुबरे ने बताया कि इसमें भरा कैल्शियम कार्बाइड पानी से रिएक्ट कर एसीटिलीन गैस बनाता है। यही गैस विस्फोट कर जलती है और पलभर में आंखों, चेहरे और त्वचा को झुलसा देती है। उन्होंने कहा कि यह कोई पटाखा नहीं बल्कि रासायनिक यंत्र है जो गलत इस्तेमाल पर जानलेवा साबित हो सकता है।
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बीएमएचआरसी की नेत्र विभागाध्यक्ष डॉ. हेमलता यादव ने चेतावनी दी कि जब गन नहीं चलती तब बच्चे उसकी नाल में झांकते हैं जबकि अंदर गैस का दबाव बढ़ता रहता है। ऐसे में अचानक विस्फोट हो जाता है। उनके अनुसार, यह गन एक केमिकल डिवाइस है जो पलभर में आंख की रोशनी छीन सकती है। जीएमसी की नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अदिति दुबे ने बताया कि एसीटिलीन गैस सांस के जरिए शरीर में पहुंचने पर मस्तिष्क और नसों को नुकसान पहुंचा सकती है। लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से सिरदर्द, मानसिक भ्रम, स्मृति दोष और हाइपोक्सिया जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
डॉ. हेमलता यादव के अनुसार, इस गन के विस्फोट से आइरिस और कॉर्निया बुरी तरह नष्ट हो सकते हैं। कई मामलों में स्टेम सेल डिफिशिएंसी और ऑप्टिक न्यूरोपैथी के कारण मरीज जीवनभर के लिए दृष्टिहीन हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस गन की बिक्री और इस्तेमाल पर तुरंत प्रतिबंध जरूरी है। इंदौर के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ. ओ. पी. अग्रवाल ने बताया कि पिछले 24 घंटे में तीन बच्चों को आपातकालीन उपचार की आवश्यकता पड़ी। उन्होंने कहा कि केवल कार्बाइड गन से घायल बच्चों की संख्या पिछले पंद्रह दिनों में लगातार बढ़ रही है जो गंभीर संकेत है।
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भोपाल प्रशासन ने भी कार्रवाई शुरू कर दी है। बैरसिया क्षेत्र में एसडीएम रवीश कुमार श्रीवास्तव के निर्देश पर गठित चार टीमों ने 19 देसी कार्बाइड गन जब्त की हैं। ये टीमें गोविंदपुरा, जंबूरी मैदान, करोंद और छोला इलाकों में बाजारों की सघन जांच कर रही हैं। जंबूरी मैदान और आनंद नगर क्षेत्र में पटवारी सुरेंद्र यादव और आशीष मिश्रा, टीआईटी गोविंदपुरा में महेश राजन और विमलेश गुप्ता, करोंद कलां में फजल अब्बास और लेखराज लोधी, तथा छोला क्षेत्र में नीरज विश्वकर्मा और रविंद्र मार्को निगरानी कर रहे हैं। विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि यदि किसी की आंख में पटाखा गन से चोट लगे तो आंख को न रगड़ें और न धोने का प्रयास करें। केवल साफ पानी से हल्का धोकर तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से संपर्क करें। देर होने पर आंख की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है।
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