नई दिल्ली। देश में भ्रष्टाचार मिटाने का जिम्मा जिस लोकपाल पर है, वह खुद विवादों में है। लोकपाल के चेयरमैन और सदस्य अब सबसे आधुनिक, शानदार, महंगी और लग्जरी बीएमडब्ल्यू कार में सवारी करेंगे। लोकपाल ने बीएमडब्ल्यू 3 सीरीज के 330 एलआई मॉडल की सफेद रंग की आलीशान और सुपर लग्जरियस कारों की टेंडर जारी की है।

देश में भ्रष्टाचार और मनमानी पर निगाहदारी रखने वाले लोकपाल करीब 70 लाख रुपये कीमत वाली इन सबसे महंगी कारों से इसी साल 2025 में ही चलने लगेंगे। सात कारें पांच करोड़ रुपये से ज्यादा की पड़ेंगी। लोकपाल में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, इन गाड़ियों की डिलिवरी अगले महीने होने की उम्मीद है।

लोकपाल अध्यक्ष और सातों सदस्य जिस बीएमडब्ल्यू 330एलआई मॉडल में चलेंगे, वह सबसे आधुनिक विलासिता से परिपूर्ण है। यह लॉन्ग व्हील बेस मॉडल कार सबसे सुरक्षित, तेज रफ्तार और शानदार मानी जाती है। लोकपाल की ओर से इस संबंध में 16 अक्टूबर को टेंडर जारी हुई थी। टेंडर प्रक्रिया सबके लिए खुली है। लोकपाल ऑफिस ने इच्छुक पक्षों से 7 नवंबर से पहले अपनी बोली जमा करने को कहा गया है। 

कारें डिलीवर होने के बाद BMW लोकपाल के ड्राइवरों और स्टाफ को सात दिन की ट्रेनिंग देगी, जिसमें गाड़ियों के सिस्टम और उनके सही इस्तेमाल के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी। बहरहाल, लोकपाल के इस कदम की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हो रही है।नकुछ लोग इसे मोदी सरकार की 'निष्क्रिय' संस्था बनाने की साजिश बता रहे हैं, तो कुछ लोग जनता के टैक्सपेयर्स के पैसे के दुरुपयोग पर सवाल उठा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील व सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने एक्स पर पोस्ट किया, 'मोदी सरकार ने लोकपाल को खाली रखकर और चापलूस सदस्यों की नियुक्ति करके धूल में मिला दिया। वे भ्रष्टाचार से परेशान नहीं, अपनी लग्जरी से खुश हैं। अब वे खुद के लिए 70 लाख की बीएमडब्ल्यू कारें खरीद रहे हैं।' 

कांग्रेस नेता सामा राम मोहन रेड्डी ने लिखा, 'भ्रष्टाचार से लड़ने वाला लोकपाल अब 5 करोड़ की सात लग्जरी बीएमडब्ल्यू कारें खरीद रहा है। मोदी सरकार के 11 वर्षों में उन्होंने एक भी भ्रष्टाचार का मामला हल किया है?' पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने इसे 'अजीब' और 'टैक्सपेयर्स के पैसे की बर्बादी' कहा। अन्य यूजरों ने सवाल उठाया कि भ्रष्टाचार निरोधक संस्था क्यों भारतीय कारों के बजाय विदेशी लग्जरी चुन रही है?

बता दें कि लोकपाल का गठन 2013 के लोकपाल एंड लोकायुक्ता एक्ट के तहत 2019 में हुआ, जो 2011 के अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन का परिणाम था। यह सात सदस्यीय संस्था प्रधानमंत्री, मंत्रियों, सांसदों और वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करती है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि मोदी सरकार ने इसे कमजोर किया: नियुक्तियां देरी से हुईं, और 11 वर्षों में कोई बड़ा केस सुलझा नहीं। हाल ही में महुआ मोइत्रा मामले में सीबीआई छापे लोकपाल के निर्देश पर हुए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अब BMW विवाद लोकपाल की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है। सवाल ये है कि अगर भ्रष्टाचार निरोधक खुद लग्जरी का प्रतीक बन जाए, तो जनता का भरोसा कैसे बचेगा?