इंदौर। भारत में हर साल होने वाले सुसाइड केस के आंकड़े डराने वाले हैं। भारत में हर साल 1 लाख से ज्यादा आत्महत्याएं होती हैं। इसी पर नियंत्रण पाने के लिए विश्व इस स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सुझाव पर हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इंदौर में इस दिन 3 दिवसीय सेमिनार आयोजित किया गया है। जिसमें एक्सपर्टस आत्महत्या के कारण, रोकथाम पर चर्चा कर रहे हैं।

शुक्रवार को एनजीओ क्रिएट स्टोरीज़ द्वारा आयोजित सेमिनार में मनोचिकित्सक डॉ. पवन राठी ने लोगों को संबोधित किया। डॉ. राठी ने कहा विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत में हर साल लगभग 1 लाख लोग अलग-अलग वजहों से आत्महत्या करते हैं। पूरी दुनिया में हर सेकंड में कोई न कोई आत्महत्या करने की कोशिश करता है। हर साल दुनिया के 8 लाख लोग सुसाइड करते हैं।

डॉ. राठी ने बताया कि,  ‘ऐसा तब होता है जब लोग तनावपूर्ण मानसिक स्थिति में पहुंच जाते हैं और सोचने लगते हैं कि अब जीवन में कुछ नहीं बचा है तो उनके मन में आत्महत्या के विचार आ जाते हैं।’ उन्होंने कहा कि आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर 15 से 29 साल के लोग होते हैं। आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर किशोर और युवा हैं।

उन्होंने आगे कहा कि पारिवारिक तनाव के अलावा, ज्यादातर लोगों की आत्महत्या का मुख्य कारण पढ़ाई का दबाव और बेरोजगारी एवं कर्ज है। ऐसे 80 प्रतिशत मामलों में आत्महत्या को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि शोध से पता चलता है कि आत्महत्या को रोकने का सबसे अच्छा तरीका इसके पहले मिलने वाले संकेतों को समझना है। जैसे अवसाद, चिढ़चिढ़ापन, अकेले रहने की आदत आदि। इन्हें समझ कर व्यक्ति का समय पर इलाज किया जा सकता है।

डॉ.राठी ने आत्महत्या करने वाले लोगों के व्यवहार में परिवर्तनों के बारे में भी बताया जो इस प्रकार होते हैं। दोस्तों से अचानक अलग हो जाना और अकेले रहने लगना। अपनी प्रिय वस्तुएं किसी को दे देना, अचानक वसीयत बनाना। अत्यधिक तेज़ गाड़ी चलाने जैसे खतरनाक जोखिम उठाना। अचानक से मूड परिवर्तन होने लगना। अधिक या कम खाना या सोना। नशीली दवाओं या शराब का सेवन बढ़ाना। इस तरह के परिवर्तन आत्महत्या करने वालों में सामान्यत: देखे जाते हैं।