भोपाल। देशभर में सबसे पहले एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में शुरू करने का तमगा मध्य प्रदेश ने हासिल तो कर लिया है। लेकिन यह बहुप्रचारित प्रोजेक्ट फ्लॉप होता नजर आ रहा है। सरकार ने तीन साल पहले बेहद ताम-झाम के साथ इसकी शुरुआत की थी। 10 करोड़ रुपए खर्च कर हिंदी में किताबें भी छपवाई गई। लेकिन वास्तविक स्थिति ये है कि विगत तीन सालों में एक भी मेडिकल छात्र ने परीक्षा में हिंदी में उत्तर नहीं लिखा।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 12 अक्टूबर 2022 को एमबीबीएस की हिन्दी अनुवादित किताबों का विमोचन करने आए थे। इसी के साथ MBBS पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई थी। उस समय सरकार ने दावा किया था कि इससे उन छात्रों को फायदा होगा, जो हिन्दी मीडियम से पढ़ाई कर मेडिकल कोर्स में दाखिला लेते हैं। अमित शाह ने कहा था कि यह क्षण शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्निमाण का क्षण है। लेकिन अब इसके तीन साल होने वाले हैं बावजूद छात्रों की हिंदी पाठ्यक्रम में कोई दिलचस्पी नहीं है।

मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी, जबलपुर के रजिस्ट्रार पीएस बघेल ने मीडियाकर्मियों को बताया कि राज्य के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हिन्दी में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू हो गई है। हालांकि, जब उनसे पूछा कि पिछले तीन साल में कितने छात्रों ने परीक्षा में हिन्दी में उत्तर लिखे हैं, तो उन्होंने कहा कि ऐसा एक भी छात्र नहीं है, जिसने हिन्दी में उत्तर लिखे हों। एमबीबीएस के सभी छात्र एग्जाम में अंग्रेजी में ही जवाब लिखते हैं।

बघेल के मुताबिक छात्र जो एग्जाम फॉर्म भरते हैं, उसमें अभी तक भाषा का माध्यम चुनने की बाध्यता और विकल्प नहीं था। अभी तक ये माना जाता था कि मेडिकल का एग्जाम आपको अंग्रेजी में ही देना है। तीन साल पहले जब हिन्दी में पाठ्यक्रम शुरू हुआ, तब भी ऐसी कोई बाध्यता नहीं रखी गई। स्टूडेंट्स दोनों ही भाषाओं में अपना उत्तर लिख सकते थे। इसके बाद भी सभी छात्रों ने अंग्रेजी भाषा को ही चुना है।

रजिस्ट्रार बघेल ने यह भी कहा कि हिन्दी में मेडिकल और डेंटल की परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स को सरकार ने प्रोत्साहन देने का फैसला किया है। सरकार ने तय किया है कि ऐसे स्टूडेंट को परीक्षा फीस में 50 फीसदी की छूट मिलेगी। मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोई भी स्टूडेंट्स मेडिकल में पीजी, रिसर्च और विदेश में जाकर आगे की पढ़ाई करना चाहता है, तो हिंदी मीडियम की वजह से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पडे़गा। मेडिकल कॉलेज के स्टू़डेंटस हिंदी की बजाय अंग्रेजी को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है कि उन्हें अपना फ्यूचर भी देखना है।