भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित लोक शिक्षण संचालनालय पर (DPI) मंगलवार को सैकड़ों की तादाद में अभ्यर्थी पहुंचे। राज्य के विभिन्न जिलों से आए करीब 100 संगीत शिक्षक पद के उम्मीदवार वहां पहुंचे और प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद तथा प्राचीन कला केंद्र, चंडीगढ़ की डिग्रियों की मान्यता को लेकर स्पष्टीकरण और न्याय की मांग की। अभ्यर्थियों का कहना है कि भर्ती प्रक्रिया के अंतिम चरण में उनकी उपाधियों पर सवाल उठाकर उनके भविष्य को अनिश्चितता में डाल दिया गया है।

अभ्यर्थियों ने बताया कि प्रयाग संगीत समिति और प्राचीन कला केंद्र द्वारा प्रदत्त संगीत प्रभाकर और संगीत विशारद जैसी पारंपरिक उपाधियां दशकों से देशभर में मान्य रही हैं। साल 1926 में स्थापित प्रयाग संगीत समिति स्वतंत्रता पूर्व से ही संगीत शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत है। जबकि, साल 1956 में स्थापित प्राचीन कला केंद्र, चंडीगढ़ एक स्वायत्त संगीत संस्थान है जो यूजीसी के नियमन से पहले से संगीत के संरक्षण और प्रचार में योगदान दे रहा है। इन संस्थानों की उपाधियों को सुप्रीम कोर्ट, विभिन्न हाई कोर्ट, सीबीएसई और अन्य संवैधानिक व शैक्षणिक संस्थानों द्वारा कई बार मान्यता दी जा चुकी है। इसके अलावा मध्य प्रदेश शासन ने भी साल 1974 में आदेश जारी कर इन उपाधियों के आधार पर संगीत शिक्षकों की नियुक्ति को वैध माना था।

इसके बावजूद अभ्यर्थियों का आरोप है कि डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के अंतिम चरण में डीपीआई द्वारा इन डिग्रियों और डिप्लोमा को संगीत स्नातक के समकक्ष माने जाने पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। उम्मीदवारों का कहना है कि उन्होंने मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल द्वारा आयोजित कठिन पात्रता और चयन परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं और चार वर्षों से नियुक्ति प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में अंतिम चरण में मान्यता पर प्रश्न उठना लेजिटिमेट एक्सपेक्टेशन और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है। साथ ही यह सैकड़ों अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ गंभीर अन्याय भी है।

अभ्यर्थियों ने डीपीआई अधिकारियों के समक्ष 62 पन्नों का विस्तृत दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत किया। इसमें विभिन्न राज्यों के हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, सीबीएसई और अन्य प्राधिकरणों के निर्णय शामिल हैं। अधिकारियों ने सभी दस्तावेजों को स्वीकार करते हुए शीघ्र न्यायोचित निर्णय लेने का आश्वासन दिया और इसकी पावती भी प्रदान की।

उम्मीदवारों का कहना है कि भर्ती प्रक्रिया के नोटिफिकेशन के समय इस प्रकार की कोई आपत्ति सामने नहीं आई थी। लेकिन अब इच्छानुसार नए शब्द जोड़कर नियमों में बदलाव किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि फिलहाल मध्य प्रदेश शासन के अंतर्गत अनेक अतिथि शिक्षक संगीत प्रभाकर और संगीत विशारद की योग्यता के आधार पर तीन सालों से अधिक समय से शिक्षण कार्य कर रहे हैं। इसकी वजह से इन उपाधियों की व्यावहारिक मान्यता पहले से स्थापित है।

अभ्यर्थियों ने हालिया न्यायिक निर्णय का भी हवाला दिया। बीते 4 दिसंबर को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रयाग संगीत समिति के पक्ष में फैसला देते हुए केंद्रीय विद्यालय संगठन के खिलाफ भैरवी कुमारी को नियुक्त करने का आदेश दिया था। यह निर्णय इन उपाधियों की वैधता को एक बार फिर स्पष्ट रूप से पुष्ट करता है। अभ्यर्थियों ने डीपीआई से मांग की है कि सभी उपलब्ध न्यायिक निर्णयों और प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर जल्द से जल्द स्पष्ट फैसला लिया जाए। ताकि सालों से प्रतीक्षा कर रहे सैकड़ों विद्यार्थियों का भविष्य सुरक्षित हो सके और संगीत शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में व्याप्त असमंजस समाप्त किया जा सके।