नई दिल्ली। मोदी सरकार विवादित नागरिकता संशोधन कानून से जुड़े नियम तैयार कर रही है ताकि इस कानून को जनवरी तक लागू किया जा सके। यह जानकारी खुद गृह मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में दी है।नागरिकता संशोधन कानून को सरकार ने भारी विरोध के बावजूद एक साल पहले ही पारित करा लिया था, लेकिन इससे जुड़े नियम नहीं बनाए जाने के कारण यह अब तक लागू नहीं हुआ है। इस विवादित कानून को लागू किए जाने पर देश में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला फिर से शुरू हो सकता है।  

बीजेपी ने दिए संकेत, जनवरी में लागू हो सकता है कानून 

बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल में कहा था कि नागरिक संशोधन कानून को जनवरी तक लागू कर दिया जाएगा। कैलाश विजयवर्गीय के इस बयान के बाद से ही यह चर्चा हो रही है कि सरकार पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले इसे लागू करना चाहती है ताकि इसका चुनावी फायदा उठाया जा सके। बता दें कि अगले साल पश्चिम बंगाल के अलावा असम में भी चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी का पूरा ज़ोर गैर मुस्लिम शरणार्थियों का मुद्दा उठाकर, दोनों ही राज्यों में धार्मिक ध्रुवीकरण तेज़ करने पर होगा।

देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस कानून को लेकर अभी से विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। पूर्वोत्तर के छात्र संगठनों ने शुक्रवार को नागरिकता संशोधन कानून के संसद में पास होने की पहली सालगिरह को काला दिवस मनाया। इस आंदोलन में पूर्वोत्तर के सात राज्यों के आठ छात्र संगठन शामिल हैं। नागरिकता संशोधन कानून विरोधी आंदोलन के दौरान पूर्वोत्तर में पांच छात्रों की मौत भी हो चुकी है।

क्या है नागरिकता संशोधन कानून

दरअसल नागरिकता संशोधन कानून के तहत अफ़ग़ानिस्तान, बंगलादेश और पाकिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक कथित तौर पर प्रताड़ित हो कर आए 6 गैर मुस्लिम समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इस कानून का विरोध करने वालों का कहना है कि सरकार का यह कानून नागरिकता जैसे अहम मामले में धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है, जबकि संविधान इस बात की अनुमति नहीं देता। आरोप यह भी है कि बीजेपी यह कानून देश भर में हिन्दू ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने के मकसद से लेकर आई है। 

इस कानून का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि सरकार अगर पड़ोसी देशों से प्रताड़ित हो कर आए लोगों को नागरिकता देना चाहती है, तो इसमें मुस्लिम समुदाय को अलग करके क्यों छोड़ दिया गया है? लेकिन पूरे समय सरकार और बीजेपी की ओर से यह माहौल बनाने की कोशिश की गई कि नए कानून का विरोध करने वाले लोग हिन्दू विरोधी हैं। जबकि हकीकत यह है कि विरोध करने वाले एक भी आदमी ने कभी यह नहीं कहा कि प्रताड़ित हिंदुओं को नागरिकता नहीं मिलनी चाहिए। बल्कि उनका एतराज़ तो इसमें मुस्लिम समुदाय को अलग रखे जाने पर है। साथ ही यह आशंका भी है कि पहले एनआरसी यानी राष्ट्री नागरिकता रजिस्टर और उसके बाद नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने की जिस क्रोनोलॉजी का ज़िक्र गृहमंत्री अमित शाह करते रहे हैं, उसका इस्तेमाल कई ऐसे मुस्लिम परिवारों की नागरिकता छीनने के लिए बेघर होना पड़ सकता है जो कि वास्तव में इस देश के नागरिक हैं। 

ध्यान देने की बात यह भी है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में करीब 140 याचिकाएं दायर हैं, जिनमें इस कानून को भारतीय संविधान के खिलाफ बताकर खारिज़ करने की मांग की गई है। लेकिन इन याचिकाओं पर अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। क्या यह बात हैरान करने वाली नहीं कि अर्णब गोस्वानी की रिहाई के लिए युद्ध स्तर पर सुनवाई करने वाले सुप्रीम कोर्ट को इतने महत्वपूर्ण संवैधानिक मामले की सुनवाई के लिए ज़रा भी वक्त नहीं मिल पा रहा है?