भारतीय रेलवे द्वारा पूर्वी मालवाहक गलियारे के सिग्नल एवं दूरसंचार कार्य के लिए एक चीनी कंपनी को दिए गए ठेके को रद्द करने के बाद, चीनी कंपनी ने रेलवे के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कंपनी ने हाई कोर्ट में यह मांग की है कि भारतीय रेलवे इस प्रोजेक्ट की बैंक गारंटी को हाथ ना लगाए। रेलवे ने 17 जुलाई को यह कहते हुए ठेका रद्द कर दिया था कि चीनी कंपनी की काम करने की गति बहुत धीमी है। यह कार्य कानपुर और मुगलसराय के बीच गलियारे के 471 किलोमीटर लंबे खंड पर किया जाना था। चीनी कंपनी ने इस प्रोजेक्ट पर 4 साल में केवल 20 प्रतिशत काम ही किया है। चीनी कंपनी को यह ठेका कानपुर से मुलसराय के बीच मिला था।


इससे पहले डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (डीएफसीसीआईएल) के प्रबंध निदेशक अनुराग सचान ने कहा कि बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिजाइन इंस्टिट्यूट ऑफ सिग्नल एंड कम्युनिकेशन ग्रुप को 14 दिन का नोटिस देने के बाद यह ठेका रद्द किया गया है। इसी ग्रुप को 2016 में 471 करोड़ रूपये का यह ठेका दिया गया था। डीएफसीसीआईएल इस परियोजना की क्रियान्वयन एजेंसी है। बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिजाइन इंस्टिट्यूट ऑफ सिग्नल एंड कम्युनिकेशन ग्रुप, चीनी कंपनी का नाम है।


अधिकारियों ने बताया कि चीनी कंपनी को इस परियोजना से बाहर निकालने का काम जनवरी 2019 में शुरू हुआ था क्योंकि वह निर्धारित समयसीमा में काम नहीं कर पाई थी। डीएफसीसीआईएल ने इस साल अप्रैल में विश्व बैंक को यह ठेका रद्द करने के अपने फैसले के बारे में बता दिया था। विश्व बैंक ही इस परियोजना के लिए फंडिंग भी कर रहा है। हालांकि, विश्व बैंक की तरफ से अभी इस संबंध में कोई भी अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) नहीं मिला है।