कोरोना वायरस को फैलने से रोकेन के लिए देश भर में लागू किए गए लॉकडाउन का दूसरा चरण तीन मई को खत्म होना है। इन दो चरणों के दौरान देश कई तरह की समस्‍याएं भोग रहा है। कई प्रवासी मजदूर दूसरे राज्‍यों में फंसे हैं। उन्‍हें खाना नहीं मिल रहा है। ऐसे में मांग की जा रही है कि लॉक डाउन को खत्‍म करना चाहिए। शीर्ष एपिडेमोलॉजिस्ट भविष्य में बीमारी के प्रबंधन और लॉकडाउन हटाकर सामान्य स्थिति को बहाल करने को लेकर एकमत नहीं हैं।

संक्रामक रोगों के दो वरिष्ठ विशेषज्ञों जयप्रकाश मुलियल और टी जैकब जॉन का मानना है कि अब लॉकडाउन को खत्म कर देना चाहिए। लंबे समय तक लॉकडाउन को बनाए रखने का मतलब है कि एक चूहे को मारने के लिए पूरे घर को जला देना।

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दूसरी तरफ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से खोलना चाहिए और सरकार को सर्विलांस के जरिए कड़ी नजर बनाए रखनी चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी है कि ‘हर्ड इम्युनिटी’ हासिल करने की एक भारी कीमत चुकानी पड़ेगी; पॉजिटिव केस की संख्या एकदम से बढ़ेगी जिससे स्वास्थ्य व्यवस्था पर बहुत अधिक दबाव पड़ेगा।

जयप्रकाश मुलियल ने इकॉनोमिक टाइम्‍स से कहा, “फिलहाल इस बीमारी का सबसे बुरा असर बूढ़ों के ऊपर ही पड़ता है। इसलिए बूढ़े लोगों को दो से तीन महीने के लिए क्वारैंटाइन कर देना चाहिए और युवाओं को वापस काम पर जाने देना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि काम पर जाने के दौरान यदि कई युवा संक्रमित हो जाते हैं तो यह दुर्भाग्‍यपूर्ण होगा मगर उनके इलाज के लिए हमारे पास संसाधन होंगे। इससे मृत्यु दर में कमी आएगी और फिर हम हर्ड इम्युनिटी हासिल कर लेंगे।गौरतलब है कि जनसंख्या का एक बड़ा भाग संक्रमित होने के बाद प्राकृतिक रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है, जिससे संक्रमण फैलने की दर बहुत धीमी हो जाती है। इसे हर्ड इम्युनिटी कहा जाता है। इसकी वकालत सबसे पहले यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने की थी। बाद में यूके ने ही इसे नकार दिया।

वहीं इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के दो विशेषज्ञों का कहना है कि लॉक डाउन अभी नहीं हटाना चाहिए। लोगों को इस तरह के लॉकडाउन की आदत डाल लेनी चाहिए। यही अब सामान्य हालात हैं।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में संक्रामक रोग विशेषज्ञ गिरिधर बाबू ने कहा, “हर्ड इम्युनिटी का सिद्धांत अभी बस सैद्धांतिक रूप में ही है। ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां बीमारी से उबर चुके लोग फिर से संक्रमित हो गए।”

इंस्टीट्यूट ऑफ इनफेक्सियस डिजीज के डायरेक्टर संजय पुजारी ने कहा, “मेरे विचार में लॉकडाउन बोझ को कम करने में कामयाब रहा है। इसने तैयारी करने और टेस्टिंग बढ़ाने में सहायता प्रदान की है। इसने उन मॉडलों को गलत साबित किया है जिन्होंने बहुत खराब स्थिति की आशंका जताई थी।”