नई दिल्ली। इजरायली स्पाईवेयर पेगासस ने दुनिया के कई देशों में राजनीतिक हलचल मचा रखा है। भारत में भी जासूसी कांड को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष आमने-सामने है। अब एक सवाल यह भी है कि जिस किसी ने भी पेगासस के जरिए जासूसी की वह इसपर कितना खर्च कर रहा है? साल 2016 में द न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक स्पाईवेयर कंपनी NSO ने अपने प्रोडक्ट की कीमत ग्राहकों के हिसाब से अलग-अलग रखी है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक NSO पेगासस स्पाइवेयर सिर्फ इंस्टॉल करने के लिए ही 5 लाख डॉलर यानी पौने चार करोड़ के करीब चार्ज करती है। इसके अलावा 10 आईफोन या एंड्रॉयड यूजर्स पर जासूसी के लिए 6.5 लाख डॉलर यानी तकरीबन पौने पांच करोड़ रुपए अलग से देने होते हैं। यदि जासूसी 5 ब्लैक बेरी यूजर्स की करनी हो तब 5 लाख डॉलर देने होते हैं।

जानकारी के मुताबिक इसके अलावा यदि जासूसी का दायरा बढ़ता है तो उसके लिए क्लाइंट से एनएसओ अतिरिक्त चार्ज वसूलती है। मसलन 10 एक्स्ट्रा टारगेट के लिए 8 लाख डॉलर, 50 एक्स्ट्रा टारगेट के लिए 5 लाख डॉलर वहीं 20 एक्स्ट्रा टारगेट के लिए डेढ़ लाख डॉलर एक्स्ट्रा देने होते हैं। इतना ही नहीं इसके अलावा सालाना मेंटेनेंस फी के तौर पर कुल खर्च का 17 फीसदी अलग से देने होते हैं। प्लान रिन्यू कराने के लिए एक्स्ट्रा पैसे देने होते हैं।

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इस रेट के साथ यदि ये जोड़ने की कोशिश की जाए कि भारतीयों की जासूसी पर एजेंसियों ने कितने रुपए खर्च की तो वह 50 करोड़ रुपए से ज्यादा है। यदि लीक्ड लिस्ट को ही देखा जाए तो अबतक उनमें 500 नंबर्स हैं। यदि यह माना जाए कि एक ही एजेंसी ने इन सब की जासूसी की तब उसका खर्च 7.5 मिलियन डॉलर यानी 56 करोड़ रुपए है। यह खर्च का अनुमान न्यूनतम है। यदि एक से अधिक एजेंसियों ने इसका इस्तेमाल किया होगा तो वास्तविक खर्च इससे कहीं अधिक हो सकती है।