पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सूबे में महागठबंधन को तगड़ा झटका लगा है। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) ने गुरुवार (20 अगस्त) को महागठबंधन से नात तोड़ लिया है। पार्टी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव पर जिद्दी होने का आरोप लगाया है। जीतन राम मांझी का चुनाव से ठीक पहले अलग होना महागठबंधन के लिए बड़ी क्षति मानी जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अब मांझी एनडीए गठबंधन में प्रवेश कर सकते हैं।

गुरुवार को महागठबंधन से अलग होने के बाद हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने कहा, 'आरजेडी नेता तेजस्वी यादव काफी जिद्दी हैं। वह किसी की बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में महागठबंधन में उनके साथ रहकर काम करना मुश्किल हो गया है। इसलिए हमारी पार्टी ने आज महागठबंधन से अलग होने का फैसला लिया है।' फिलहाल मांझी ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि आगे उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी या वह एनडीए का हिस्सा बनेंगे। हालांकि यह लगभग साफ है कि हम एनडीए गठबंधन में शामिल होगी। पार्टी प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा है कि एनडीए में जाने पर जल्द फैसला लिया जाएगा।

सूत्रों की मानें तो जदयू उन्हें 5-6 सीट देने के लिए तैयार है लेकिन जदयू यह चाहती है कि पार्टी का विलय हो जाए। लेकिन मांझी विलय के पक्ष में नहीं हैं और अपने पार्टी का अस्तित्व बचाए रखना चाहते हैं। बता दें कि मांझी 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से ही महागठबंधन से नाराज चल रहे थे। उन्होंने कई बार कोऑर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग की थी लेकिन आरजेडी ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया। इसी बीच यह भी खबर है कि मांझी के पुत्र को नीतीश सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है।

जातीय वोटबैंक पर कितना पड़ेगा प्रभाव ?

बिहार के 243 विधानसभा सीटों के लिए इस साल नवंबर में चुनाव होने की संभावना है। वोटबैंक को देखा जाए तो सूबे में दलित और महादलित को मिलाकर करीब 16 प्रतिशत वोटर हैं। इसमें 5 प्रतिशत वोट पासवान जाति का है जिसपर लोजपा दावा करती है। वहीं मांझी जिस मुसहर जाती से आते हैं उसका वोट प्रतिशत 5.5 फीसदी है। ऐसे में अगर मांझी के एनडीए में शामिल होने के बाद महागठबंधन को खासा नुकसान हो सकता है।