कानपुर/लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कानपुर में कथित लव जिहाद के मामलों की जांच के लिए गठित स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (SIT) ने कहा है कि उसने अंतर-धार्मिक शादी के जिन 14 मामलों की जांच की है, उनमें किसी तरह की साज़िश का कोई संकेत नहीं मिला है। SIT को इस बात का भी कोई सबूत नहीं मिला है कि जिन मुस्लिम युवकों ने हिंदू लड़कियों से शादी की है, उन्हें विदेशों से कोई फंड मिले हैं। अंग्रेज़ी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़ SIT ने सोमवार को पेश की गई अपनी रिपोर्ट में इन युवकों को किसी संगठन से  समर्थन दिए जाने की संभावना को भी खारिज कर दिया है।

ख़ास बात ये है कि SIT की यह रिपोर्ट आने से दो दिन पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार ने एलान किया है कि वो राज्य में कथित लव जिहाद के मामलों को रोकने के लिए धर्मांतरण के खिलाफ अध्यादेश लेकर आएगी। कानपुर में कथित लव जिहाद के मामलों की जांच के लिए SIT बनाने का एलान कानपुर रेंज के आईजी मोहित अग्रवाल ने किया था। उन्होंने SIT का गठन विश्व हिंदू परिषद समेत कुछ हिंदू संगठनों की मांग पर किया था। इन संगठनों ने आईजी से मिलकर आरोप लगाया था कि मुस्लिम युवक एक साज़िश के तहत हिंदू लड़कियों से शादी करते हैं ताकि उनका धर्म परिवर्तन कराया जा सके। उन्होंने यह आरोप भी लगाया था कि ऐसा करने वाले मुस्लिम युवकों को विदेशों से फंडिंग मिल रही है।

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डीएसपी विकास पांडेय की अगुवाई वाली SIT ने आईजी अग्रवाल को अपनी जो रिपोर्ट सौंपी है, वो पूरे कानपुर ज़िले में पिछले दो सालों के दौरान हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के की शादी के खिलाफ पुलिस में दर्ज 14 मामलों की तहकीकात पर आधारित है। अग्रवाल ने बताया कि इन 14 में से 11 मामलों में पुलिस ने कार्रवाई की है, जबकि तीन मामलों में कार्रवाई का कोई आधार नहीं मिलने पर क्लोज़र रिपोर्ट लगानी पड़ी।

SIT की अगुवाई करने वाले डीएसपी पांडेय ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि 11 मामलों में लड़कियों का नाम बदलने के लिए सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। इसके अलावा उनकी शादियों को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर भी नहीं किया गया था।

जिन 11 मामलों में पुलिस ने कार्रवाई की, उनमें 8 मामले लड़की के नाबाालिग होने के हैं, जबकि तीन मामलों में लड़कों पर लड़की को प्रभावित करने के लिए जाली दस्तावेज बनवाने का आरोप है। SIT ने ये भी पाया कि इन 14 मामलों में सिर्फ 4 मामलों में लड़के आपस में परिचित थे। वो भी एक ही मुहल्ले में रहने की वजह से। SIT अपनी जांच के दौरान इस नतीजे पर पहुंची है कि इन मामलों में साज़िश रचे जाने या उन्हें फंड दिए जाने के आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है।