नई दिल्ली। आधार कार्ड से कोरोना वैक्सीन लेने वाले सावधान हो जाएं। आपकी निजी डेटा से आपको बताए बिना छेड़छाड़ हो रहा है। यदि पहचान पत्र के तौर पर आपने वैक्सीन लेते वक्त आधार कार्ड का इस्तेमाल किया है तो इस बात की पूरी संभावना है कि आपकी हेल्थ आईडी बना दी गई हो। वह भी बिना आपकी स्वीकृति लिए।

दरअसल, इसी हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया की मौजूदगी में आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की शुरुआत की है। इस डिजिटल मिशन के तहत लोगों को डिजिटल स्वास्थ्य पहचान पत्र देने की योजना है। इस आईडी में उनका स्वास्थ्य संबंधी रिकॉर्ड दर्ज होगा। 

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NDHM ने इसे स्वैच्छिक बताया है, यानी आपकी मर्जी हो तब ही आप हेल्थ आईडी बनाएं, अनिवार्यता जैसी कोई बात नहीं है। हालांकि, द प्रिंट की जांच में इस योजना में बड़े स्तर पर गड़बड़झाला मिला है। द प्रिंट के मुताबिक वैक्सीन के लिए आधार कार्ड का डेटा लेकर मोदी सरकार अपनी मर्जी से लोगों की हेल्थ आईडी बना रही है।

स्वास्थ्य विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने द प्रिंट को बताया कि, 'जैसे ही कोई व्यक्ति कोविन ऐप पर वैक्सीनेशन के लिए आधार कार्ड से रजिस्ट्रेशन करता है तो ऑटोमैटिक हेल्थ आईडी जेनेरेट हो रही है। टीकाकरण केंद्र पर संबंधित व्यक्ति से इसके लिए सहमति ली गई होगी।' हालांकि, ऐसा नहीं है। कई मामलों में देखा गया कि बिना सहमति के ही हेल्थ आईडी बनाई गई है।

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कोविन प्लेटफार्म पर कुल 6 विभिन्न पहचान पत्र से लॉगिन किया जा सकता है। ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट और पैन कॉर्ड से यदि रजिस्ट्रेशन किया जाए तो हेल्थ आईडी नहीं बनती है। बता दें कि यूनिक हेल्थ आईडी में 14 अंक का एक नंबर होता है, जिससे एक क्लिक में किसी भी व्यक्ति की ऑनलाइन मेडिकल हिस्ट्री चेक की जा सकता है।

हेल्थ आईडी बनाने की इस प्रक्रिया को कानूनी जानकारों ने नागरिकों की निजता का उल्लंघन करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील प्रसन्ना एस कहती हैं कि जब केंद्र सरकार अन्य सभी मामलों में कहती है कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है तो फिर केंद्र सरकार हेल्थ आईडी कैसे जेनेरेट कर सकती है। मामले पर जब द प्रिंट ने नेशनल हेल्थ ऑथोरिटी से संपर्क करने का प्रयास किया तो कोई जवाब नहीं मिला।