कोरोना वायरस का सबसे बुरा असर मेहनत-मजदूरी करके पैसे कमाने वाले कामगारों पर पड़ा है. पिछले एक महीने में लगभग 10 से 12 करोड़ मेहनतकशों की कोई कमाई नहीं हुई है. स्टाफिंग एजेंसियों और उद्यमों की मानें तो यह संख्या ब्लू कॉलर कर्मचारी वर्ग का 70 से 80 फीसदी हिस्सा है.

कहा यह भी जा रहा है कि आने वाले समय में परिस्थितियां और भी ज्यादा खराब हो सकती हैं. अगर त्योहारी सीजन में मांग नहीं आती है तो ऐसे मेहनतकशों को काम के लाले पड़ जाएंगे.

स्टाफिंग कंपनी बेटरप्लेस के सह-संस्थापक प्रवीण अग्रवाल ने कहा, “मंदी की शुरुआत मार्च के बीच में हुई थी. केवल 2 से तीन करोड़ लोग ही अपनी नौकरी बरकरार रख पाए हैं.”

एक और स्टाफिंग एजेंसी टीमलीज ने कहा कि ट्रैवेल, टूरिज्म, हॉस्पिटैलिटी, रिटेल, एविएशन, आउटडोर एंटरटेनमेंट, फूड एंड बेवरेजेज और रियल एस्टेट सेक्टर को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. इसके अलावा मोटर वाहन, गैर-जरूरी एफएमसीजी, पोल्ट्री, डेयरी, शिपिंग और कंस्ट्रक्शन पर भी देर सबेर इसका असर दिखाई देगा.

टीमलीज की सह-संस्थापक रितुपर्णा चक्रवर्ती ने कहा, "और बुरे दिन देखना बाकी है. हालांकि, इस दौरान औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों को लॉकडाउन के दौरान सैलरी का भुगतान किया गया है."

चक्रवर्ती ने कहा कि लॉकडाउन हटने के बाद और अधिक चुनौतियां आएंगी. खासतौर से असंगठित क्षेत्र के कामगारों की मुश्किलें बनी रह सकती हैं.

अनुबंध के कर्मचारियों को ज्यादातर घंटे के हिसाब से भुगतान किया जाता है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान उनकी कमाई ठप पड़ गई. जैसे ही कारोबार बंद हुआ, ड्राइवर, डिलीवरी बॉय, सेल्स और बिजनेस डेवलपमेंट कर्मचारियों को एक से तीन महीने की सैलरी देकर उनकी छुट्टी कर दी गई. स्टॉफिंग एजेंसियों का कहना है कि नए जमाने के स्टार्टअप्स जैसे- बिजनेस-टू-बिजनेस ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म उडान, फूड-डिलीवरी ऐप स्विगी, सोशल कॉमर्स वेंचर मीशो और लॉजिस्टिक फर्म ब्लैकबक ने पिछले कुछ हफ्तों में अनुबंध वाले कर्मचारियों को हटा दिया है.