नई दिल्ली। कोरोना महामारी के खतरे को लेकर एक ही दिन में दो तरह की खबरें असमंजस पैदा कर रही हैं। एक खबर अच्छी है तो दूसरी बुरी। भ्रम इसलिए भी ज़्यादा हो रहा है क्योंकि दोनों ही खबरों के स्रोत सरकार से जुड़े हैं। 

पहले अच्छी खबर की बात करते हें। कोरोना महामारी से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाई समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना वायरस के फैलाव का पीक यानी सबसे बुरा दौर अब बीत चुका है और अगले साल फरवरी तक महामारी के एक्टिव मामलों की संख्या 40 हजार के नीचे पहुंच जाएगी।

इस अच्छी खबर की खुशी अभी ठीक से महसूस भी नहीं हुई थी कि चिंता बढ़ाने वाली सूचना आ गई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि देश के कुछ इलाकों में कोरोना महामारी का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो चुका है। कम्युनिटी ट्रांसमिशन इस महामारी की वह स्टेज है, जिसमें इंफेक्शन सामुदायिक आधार पर बड़ी तेज़ी से फैलता है। इस स्टेज में किसी तरह के पीक का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल हो जाता है। करोना ही नहीं, किसी भी महामारी में जब सामुदायिक फैलाव की स्थिति आती है, तो ये पता लगा पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है कि किसी व्यक्ति को महामारी का इंफेक्शन कहां से लगा है। ऐसे में उस पर नियंत्रण पाना बेहद कठिन हो जाता है।

हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई समिति ने पीक गुज़र जाने का अनुमान जाहिर करते समय भी लोगों से सावधानी बरतने के लिए कहा है, लेकिन अगर कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा सामने है, तो इन हालात में ज़रा सी भी ढिलाई खतरनाक हो सकती है।

चुनौती इसलिए और भी बड़ी है, क्योंकि देश में त्योहारों का सीजन शुरू हो चुका है। साथ ही बिहार और मध्य प्रदेश में चुनाव की गहमा-गहमी भी उफान पर है। ये दोनों चुनाव खत्म होने बाद जल्द ही पश्चिम बंगाल में चुनावी हवा तेज़ होने लगेगी। और भी अधिक चिंता की बात यह है कि स्वास्थ्य मंत्री ने जिन इलाकों में महामारी के सामुदायिक फैलाव की बात कही है, उनमें पश्चिम बंगाल भी शामिल है।

ऐसे में फरवरी में एक्टिव केस की संख्या घटकर 40 हजार के नीचे पहुंच जाने वाली बात कुछ ज्यादा ही आशावादी नज़र आ रही है। यह बिल्कुल वैसी ही बात है, जैसे शुरूआत में सरकार की तरफ से कहा गया था कि मई के मध्य में कोरोना वायरस भारत से खत्म हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

केंद्र सरकार की तरफ से कोरोना वायरस को लेकर यह समिति 1 जून को बनाई गई थी। कोरोना महामारी का पीक गुजर जाने की अपनी बात को पुख्ता आधार देने के लिए समिति ने कुछ आंकड़े दिए हैं। समिति का कहना है कि 17 सितंबर को देश में सबसे ज्यादा 10.17 लाख एक्टिव केस थे, जो अब घटकर 7.38 लाख पर आ गए हैं। दूसरी तरफ समिति ने खुद ही केरल का उदाहण दिया है। समिति ने बताया कि केरल में 22 अगस्त से दो सितंबर के बीच ओणम का त्योहार मनाया गया, जिसके बाद राज्य में कोरोना वायरस मामलों की बाढ़ आ गई। 

दूसरी तरफ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की बात स्वीकारी है। ममता बनर्जी ने लोगों को आगाह भी किया है कि वे त्योहारों के मौसम में सतर्कता बरतें। लेकिन कोरोना पर बनाई गई समिति इन तथ्यों के बावजूद फरवरी तक मामलों में भारी गिरावट के ऐसे दावे कर रही है जो फिलहाल तो आसमानी ही नज़र आ रहे हैं। इन घोषणाओं ने लोगों को भ्रम में डाल दिया है। हालांकि, समिति ने यह जरूर कहा है कि त्योहारी सीजन को देखते हुए एक महीने में कोरोना वायरस के 26 लाख नए मामले सामने आ सकते हैं। लेकिन इस आत्मस्वीकृति के बाद भी फरवरी में 40 हजार से कम एक्टिव मामलों के होने का दावा हैरत में डाल रहा है।

और पढ़ेंजल्दी लॉकडाउन लगाने के बाद भी कोरोना का एपिसेंटर क्यों बन गया भारत

दरअसल, कोरोना महामारी के पीक यानी सबसे बुरे स्तर के बारे में अभी कुछ भी साफ नहीं है। यूरोप के जिन देशों के लिए कहा जा रहा था कि वहां कोरोना का पीक गुजर चुका है और महामारी पर नियंत्रण पा लिया गया है, वहां भी कोरोना की पहले से भी भयावह दूसरी लहर शुरू हो रही है। इन हालात में भारत में अगले चार-पांच महीनों के दौरान महामारी की हालत में ज़बरदस्त सुधार आने की उम्मीद बहुत भरोसा जगाने वाली नहीं लग रही।