मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा में रिपब्लिक टीवी चैनल के एंकर अर्णब गोस्वामी के खिलाफ लाए गए विशेषाधिकार हनन मामले में महाराष्ट्र की विधायिका के दोनों सदन (विधानसभा और विधान परिषद) और न्यायपालिका अब आमने-सामने आ गए हैं। राज्य के दोनों सदनों में मंगलवार को यह प्रस्ताव पास कर दिया गया कि विशेषाधिकार हनन के इस मामले में दोनों सदनों के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा भेजे गए किसी भी नोटिस का न तो संज्ञान लेंगे और न ही जवाब देंगे। 

सदन में पास हुए प्रस्ताव में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि कोर्ट के किसी भी नोटिस का जवाब देने का आशय यह होगा कि न्यायपालिका विधायिका की निगरानी कर सकती है। प्रस्ताव में इसे संविधान के मूलभूत ढांचे के खिलाफ बताया गया है। विधानसभा स्पीकर नाना पटोले ने इसके एकमत से पास होने का ऐलान करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किसी नोटिस और समन का स्पीकर और डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल कोई जवाब नहीं देंगे।

वहीं दूसरी तरफ विधान परिषद में अध्यक्ष रामराजे नाइक निंबलकर ने भी एकमत से प्रस्ताव पारित होने का ऐलान किया। इसमें भी कहा गया है कि अगर अर्णब गोस्वामी विशेषाधिकार उल्लंघन की कार्यवाही को न्यायपालिका में चुनौती देते हैं, तो सदन हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए किसी नोटिस और समन का जवाब नहीं देगा।

संविधान ने सभी के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित की हैं: महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर

इससे पहले स्पीकर नाना पटोले ने कहा कि संविधान ने सरकार के तीनों अंग- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित की हैं। हर अंग को इन सीमाओं का सम्मान करना चाहिए। किसी को भी एक-दूसरे की सीमाओं में हस्तक्षेप की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

वहीं, निंबलकर ने कहा कि सार्वजनिक तौर पर विधायिका, सचिवालय और उसके सचिव और अन्य अफसर अगर कोर्ट नोटिस का जवाब देते हैं, तो इसका मतलब होगा कि वे न्यायपालिका को विधायिका पर निगरानी रखने का अधिकार दे रहे हैं और यह संविधान के आधारभूत ढांचे का ही उल्लंघन है।

यह प्रस्ताव एक गलत मिसाल पेश करेगा : बीजेपी विधायक 

महाराष्ट्र सरकार के इस प्रस्ताव के विरुद्ध दोनों ही सदनों में कोई विरोध दर्ज नहीं किया गया। हालांकि बीजेपी विधायक राहुल नरवेकर ने कहा कि इस तरह का प्रस्ताव एक गलत मिसाल पेश करेगा। इस तरह के प्रस्ताव के पास हो जाने के बाद से अब अर्णब गोस्वामी की मुश्किलें बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। 

दरअसल, 8 सितंबर को अर्णब गोस्वामी के खिलाफ शिवसेना विधायक प्रताप सरनाईक ने विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव दिया था। शिवसेना विधायक ने अर्णब गोस्वामी पर यह आरोप लगाया था कि रिपब्लिक टीवी के एडिटर अमूमन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं और इसके साथ ही झूठे बयान देते हैं। सरनाईक ने कहा था कि अर्णब अपने शो में लगातार मंत्रियों और सांसदों के खिलाफ भी आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं और उनका अपमान करते हैं।

इसके बाद अर्णब गोस्वामी ने इस प्रस्ताव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने 26 नवंबर को विधानसभा स्पीकर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। अब राज्य के दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर कोर्ट के किसी भी नोटिस पर संज्ञान लेने अथवा जवाब नहीं देने की बात कही गई है।