जयपुर। सचिन पायलट और 18 बागी विधायकों द्वारा राजस्थान विधानसभा स्पीकर के नोटिस के खिलाफ पेश की गई याचिका पर राजस्थान हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। लंच के बाद अदालत ने कहा कि वह इस मामले पर 24 जुलाई को फैसला सुनाएगी। कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर से तब तक विधायकों को दिए गए नोटिस पर कोई भी कार्रवाई ना करने का अनुरोध किया है। 

सचिन पायलट और बाकी विधायकों ने 16 जुलाई को यह याचिका डाली थी। तब से लगातार इस मामले में राजस्थान हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। इस मामले में पायलट और बागी विधायकों की तरफ से वरिष्ठ अधिकवक्ता हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी ने दलीलें पेश कीं, वहीं राजस्थान विधानसभा स्पीकर की पैरवी वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने की। कांग्रेस के व्हिप महेश जोशी की तरफ से वरिष्ठ अधिकवक्ता देवदत्त कामत ने दलीलें पेश कीं। इस मामले की सुनवाई राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस इंद्रजीत महंती और जस्टिस प्रकाश गुप्ता की बेंच ने की। 

सुबह दलीलें पेश करते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा कि स्पीकर की तरफ से भेजा गया अयोग्यता का नोटिस दुर्भावना से प्रेरित है। उन्होंने कहा कि कारण बताओ नोटिस उसी दिन दिया गया जिस दिन स्पीकर को शिकायतें मिलीं। उन्होंने कहा कि विधायकों को नोटिस का जवाब देने के लिए तीन दिन का वक्त दिया गया लेकिन नियम के मुताबिक सात दिन का समय मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि स्पीकर ने बिना कोई कारण बताए सिर्फ शिकायत के आधार पर कारण बताओ नोटिस भेज दिया। 

वहीं देवदत्त कामत ने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है जो यह कहता हो कि नोटिस देने से पहले स्पीकर को कारण बताना पड़े। उन्होंने कहा कि पूरे देश में आजतक नोटिस देने के लिए स्पीकर को कारण नहीं बताना पड़ा। कामत ने इसके लिए कर्नाटक विधानसभा का उदाहरण भी दिया। उन्होंने आगे कहा कि रोहतगी और साल्वे ने इस तर्क का कोई जवाब नहीं दिया कि पायलट और बाकी के विधायकों के कृत्य स्वत: ही पार्टी की सदस्यता छोड़ने वाले हैं। कामत ने दसवीं अनुसूचि की बात करते हुए कहा कि जो कोई भी पार्टी के भीतर का अनुशासन तोड़ता है उसकी कीमत उसे अयोग्यता के रूप में चुकानी पड़ती है। 

इससे पहले पायलट और बागी विधायकों की पैरवी करते हुए हरीश साल्वे ने कहा था कि विधायकों के आंतरिक असंतोष को दलबदल नहीं कहा जा सकता और सदन के बाहर पार्टी व्हिप का उल्लंघन कानूनी नहीं है। वहीं अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि स्पीकर के फैसले को रद्द नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि स्पीकर की शक्ति में तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता जब तक अयोग्यता के नोटिस पर कोई फैसला ना लिया गया हो। उन्होंने याचिका को समय से पहले दायर किया हुआ भी बताया। उन्होंने कहा था कि स्पीकर को नोटिस जारी करने के लिए कारण बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह महज कारण बताओ नोटिस ही है।