नई दिल्ली। एक तरफ सरकार का यह दावा है कि वो किसानों की समस्या सुलझाने के लिए तत्पर है तो वहीं बीजेपी के नेता कोई भी मौका मिलने पर किसान आंदोलन पर हमला करना नहीं बोलते। इसी बीच शिवसेना नेता संजय राउत ने बीजेपी के इस हथकंडे पर प्रहार करते हुए कहा है कि सरकार अब तक किसानों के इस आंदोलन में फूट नहीं डाल पाई है, इसलिए उसके नेता बार बार किसानों को पाकिस्तानी और खालिस्तानी कह कर संबोधित कर रहे हैं। 

लंबे अरसे तक बीजेपी की सहयोगी रही शिवसेना के नेता संजय राउत ने शनिवार को मीडिया से कहा कि सरकार इस आंदोलन में अभी तक फूट नहीं डाल सकी है।'बीजेपी के नेता उन्हें कभी खालिस्तानी तो कभी पाकिस्तानी कहेंगे। राउत ने कहा कि वो पाकिस्तानी या खालिस्तानी नहीं किसान हैं और पूरा देश उनके समर्थन में खड़ा है।'   

पूरे आंदोलन में विपक्षी पार्टियां किसानों को बखूबी समर्थन दे रही हैं। जिसे लेकर बीजेपी नेता लगातार विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं। हाल ही में राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष का एक प्रतिनिधि मंडल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने गया था। जिसमें नेताओं ने राष्ट्रपति कोविंद से किसानों के हित में कानूनों को वापस लेने की मांग की थी। 

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किसान आंदोलन में न सिर्फ विपक्ष बल्कि खुद सरकार के साथ एनडीए गठबंधन में मौजूद राजनीतिक दल भी किसान आंदोलन में किसानों के समर्थन में खड़े नज़र आए हैं। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता और राजस्थान के नागौर से लोकसभा सांसद हनुमान बेनीवाल किसानों की मांगें नहीं माने जाने पर एनडीए से नाता तोड़ने की धमकी तक दे चुके हैं।

बीजेपी की पुरानी सहयोगी रही अकाली दल तो कृषि कानूनों के पारित होने के समय ही बीजेपी से अलग हो गई थी। हरियाणा सरकार में बीजेपी की सहयोगी जेजेपी के नेता और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी किसानों के हित में फैसला न लिए जाने की स्थिति में उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की बात कह चुके हैं। 

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लेकिन इसके ठीक उलट बीजेपी नेता आंदोल रह रहे किसानों की मंशा पर ही सवाल उठाने में जुटे हैं। एक तरफ उनकी पार्टी की सरकार किसानों की समस्या सुलझाने के लिए प्रयास करने का दावा कर रही है तो दूसरी तरफ पार्टी के तमाम नेता किसा आंदोलन के बारे में विवादास्पद बयान देने में लगे रहते हैं। पूर्व थल सेना अध्यक्ष को आंदोलन की तस्वीरों में किसान नहीं दिखते हैं तो हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को लगता है कि आंदोलन में हिस्सा लेने वाले लोग खालिस्तान के समर्थक हैं।