नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीनेशन पॉलिसी को लेकर एक बार फिर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि मोदी सरकार को लताड़ते हुए कहा है कि आप सिर्फ डिजिटल इंडिया- डिजिटल इंडिया कहते रहते हैं, लेकिन आप जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से कोविन ऐप की अनिवार्यता को लेकर पूछा है कि झारखंड का एक अनपढ़ मजदूर राजस्थान में रजिस्ट्रेशन कैसे करेगा?

दरअसल सुप्रीम कोर्ट की स्पेशल पीठ कोरोना संक्रमितों को आवश्यक दवाओं, टीकों तथा मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई से जुड़े मामलों पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवीन्द्र भट की तीन सदस्यीय बेंच ने आज इसपर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को बुरी तरह लताड़ा है। कोर्ट ने पूछा कि क्या ग्रामीणों के लिए कोविन ऐप पर पंजीकरण करना हकीकत में संभव है? सरकार उनसे ऐसा करने की उम्मीद कैसे करती है?'

कॉफी पीकर जागें और देखें क्या हो रहा- SC

जस्टिस चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार से कहा कि आप कहते रहते हैं कि स्थिति गतिशील है। लेकिन पॉलिसी मेकर्स को जमीनी हकीकत से वाकिफ होना चाहिए। आपको वास्तविक स्थिति देखना होगा। सरकार सिर्फ डिजिटल इंडिया, डिजिटल इंडिया करते रहती है लेकिन जमीनी हकीकत पता ही नहीं है। मैं ई-समिति का अध्यक्ष हूं। मैंने समस्याओं को देखा है। भारत में डिजिटल साक्षरता अभी कोसों दूर है। हम नीति नहीं बदल रहे हैं लेकिन सरकार से कहना चाहते हैं कि प्लीज कॉफी को सूंघकर जागें और देखें कि देश भर में क्या हो रहा है।'

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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि केंद्र सरकार की इन नीतियों की वजह से वैक्सीनेशन अभियान में ग्रामीण इलाके पिछड़ गए हैं। 75 फीसदी टीकाकरण शहरों में हों रहा है। सरकार को नीतियों में सुधार करना चाहिए। हम अपनी गलतियों को स्वीकार कर यदि उसे सुधारते हैं तो यह कमजोरी नहीं मानी जाती है, बल्कि यह मजबूती की निशानी है। शीर्ष न्यायालय ने बलरामपुर की घटना का जिक्र करते हुए योगी सरकार को भी निशाने पर लिया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'कल एक न्यूज रिपोर्ट में दिखाया गया कि कैसे एक डेड बॉडी को नदी में फेंका गया। मुझे नहीं मालूम कि न्यूज चैनल के खिलाफ अभी तक देशद्रोह का मुकदमा दायर हुआ है या नहीं।'

देश में वैक्सीन की कीमत एक होनी चाहिए- SC

सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन की अलग-अलग कीमतों को लेकर केंद्र को निशाने पर लिया है। अदालत ने पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है की केंद्र को डोज सस्ते मिल रहे हैं और राज्यों को ज्यादा पैसे देने पड़ रहे हैं? केंद्र यूनिफॉर्म प्राइसिंग पॉलिसी क्यों नहीं अपना रही है? केंद्र ने 18-45 उम्र के लोगों के टीकाकरण की जिम्मा राज्यों पर छोड दिया। कई राज्यों के पास सीमित संसाधन हैं। अगर केंद्र 45 से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए टीका मुहैया करा सकता है तो गरीब तबके के लिए क्यों नहीं? गरीब लोग खुद से वैक्सीन खरीदने में सक्षम नहीं हैं।